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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । जायदाद को दूसरे की साबित करना, किसी की रक्खी हुई धरोहर को दबा लेना या झूठी गवाही देना इत्यादि प्रकार के झूठ का त्याग करता है । यही दूसरा अणुव्रत है । इस व्रत में जो बातें अतिचार रूप हैं उन को दिखा कर इन दो गाथाओं में उन के दोषों की आलोचना की गई है । वे आतचार इस प्रकार हैं: (१) विना विचार किये ही किसी के सिर दोष मढ़ना, (२) एकान्त में बात चीत करने वाले पर दोषारोपण करना, (३) स्त्री की गुप्त व मार्मिक बातों को प्रकट करना, (४) असत्य उपदेश देना और (५) झूठे लेख (दस्तावेज) लिखना ॥११॥१२॥ [ तीसरे अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना ] * तइए अणुव्वयाम्म, थूलगपरदव्वहरणविरईओ। आयरिअमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगणं ॥१३॥ तेनाहडप्पओगे, तप्पडिरूवे विरुद्धगमणे अ। कूडतुलकूडमाणे, पडिक्कमे देसि सव्वं ॥१४॥ * तृतीयेऽणुव्रते, स्थूलकपरद्रव्यहरणविरतितः । आचरितमप्रशस्ते, ऽत्रप्रमादप्रसङ्गेन ॥१३॥ स्तेनाहृतप्रयोगे, तत्प्रातिरूपे विरुद्धगमने च । कूटतुलाकूटमाने, प्रतिक्रामामि देवसिकं सर्वम् ॥१४॥ * थूलादत्तादानवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच०, तंजहा-तेनाहडे तकरपओगे विरुद्धरज्जाइक्कमणे कूडतुलकूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे । [आवश्यक सूत्र, पृष्ठ ८२२]
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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