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________________ आचार की गाथायें | (७) सूत्रका सत्य अर्थ करना अर्थाचार है । (८) सूत्र और अर्थ दोनों को शुद्ध पढ़ना, समझना तदुभयाचार ह । ६७ [ दर्शनाचार के भेद ] * निस्संकिय निकंखिय, निव्वितिमिच्छा अमूढादिट्ठी अ । उववूह-थिरीकरण, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ||३|| ॥३॥ अन्वयार्थ – ‘निस्संकिय' निःशङ्कपन 'निक्कंखिय' काङ्क्षा रहितपन 'निव्वितिगेिच्छा' निःसंदेहपन 'अमूढदिट्ठी' मोहरहित दृष्टि 'उववूह' बढ़ावा - गुणों की प्रशंसा करके उत्साह बढ़ाना 'थिरीकरणे' स्थिर करना 'वच्छल्ल' वात्सल्य 'अ' और 'पभावणे' प्रभावना [ ये ] 'अट्ठ' आठ [ दर्शनाचार हैं ] ॥३॥ भावार्थ - दर्शनाचार के आठ भेद हैं। उनका स्वरूप इस प्रकार है: (१) श्रीवीतराग के वचन में शङ्काशील न बने रहना निःशङ्कपन है ।, (२) जो मार्ग वीतराग-कथित नहीं है उस की चाह व रखना काङ्क्षारहितपन है । * निःशङ्कितं निष्काङ्क्षितं, निर्विचिकित्साऽमूढदृष्टिश्च । उपबृंहः स्थिरीकरणं, वात्सल्यं प्रभावनाऽष्ट ॥ ३
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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