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________________ [ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान अन्त मेघ मलार असे मेहमै पाईये प्यारो न्यारी कवह न कीजीये एक पल । गरह लगाये प्राकै भरि लैही पीत बढईया ॥ ४४ राग टोडी राजि म्हारी भरियौ माट उठावौ बेटा रावरा । जे उठाऊ गोग्डी म्हारै ने घरवासौ होय ।। ४५ पुस्तक के प्रारम्भिक ख्याल प्रतिष्ठान मे प्राप्त महाराजा बहादुरसिंह कृत ख्याल ग्रन्थाङ्क १३७५२ मे मिलते है । विषय, भाषा और शैली की दृष्टि से 'ख्यालायत' के समस्त ख्याल उक्त किशनगढ महाराजा बहादुरसिंह कृत ही ज्ञात होते है। ग्रन्थाङ्क १३७५२ मे सङ्कलित ख्याल भिन्न और लघु रूप मे लिखित होते हुए भी सख्या में केवल ८१ हैं और 'ख्यालायत' मे प्रत्येक ख्याल पूर्ण रूप मे है। "ख्यालायत" के अन्त मे "पुष्पिका" नही है जिससे कुछ ख्यालो का लेखन मे छूट जाना भी सभव हैं । राजस्थानी भाषा मे लिखित गीतसाहित्य की यह उत्कृष्ट कृति अब तक अज्ञात रहो है। महाराजा बहादुरसिंह और इनकी रचनाओ के विषय मे विशेष ज्ञातव्य मेरे द्वारा सम्पादित एव प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित "राजस्थानी साहित्य संग्रह, भाग २" मे पठनीय है। --सम्पादक ८१६१ रूपदीप भाषा आदि-॥ श्री गणेशाये नमो ।। अय पिगलौक्त रूपदीप भाषा लिष्यते । दोहा ।। शारदा माता तू बडी, मुबुधि देहु दरिहाल । पिंगलकी छाया लिये, वरने बापन चाल ॥१ गुरु गणेशके चरग गहि, यि बारिकै विष्नु । कुवर भुवानीदायको, जुगति करै जे कृष्न ।। २ प्राकृतकी वानी कठिन, भाषा सुगम प्रतक्ष । कृपारामको कृपासु, कठ करे शव मिक्ष ।। ३ अन्त – ।। सोरठा ।। द्वज पुहकर न्यात, तिसमै गोत कटारिया । सुनि प्राकृतसु वात, तैमै ही भाषा करी ।। ५४ ॥ दुहा ।। वावन वरनी बाल मव, जैसी मोमै बुध । भूल भेद जाको लहो, क्रो कवीस्वर सुव ।। ५५ मवत सत्रमै वग्म, ऊर विहतर पाय । भाद्रव सुद दुति गुरु, भयो अथ सुष पाय ॥ ५३ [५६] इति श्री रूपदीपक भामा सपूर्ण ॥ निषित रामदास कबीरपयी। सवत १९२६ श्रावण वदि ११ बुधवारे ॥ सतनाम कवीरकी दया सत महतकी दया सु ।। १ ।। ७८७५ शत्रुभेद रचना का मादि भाग पत्र स० १ के अभाव मे अप्राप्य है ।
SR No.010594
Book TitleRajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1961
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size5 MB
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