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________________ १२४ ] [ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान अन्त- हुजदारा हेक वार जात सेजे जावै । अकल पथ हिंगलाज तहा काय हुइ प्रावै ॥ पाकरण पोतदार तिकै द्वारका पधारौ। ज्यों पातिक मिट जाय हुई आतम निसतारौ । उतपात मात करसी अलग जात कीया दुष जावमी । द्वारकानाथ प्रतापय इतरै होली पावसी ।। १ सवत १७३५रा पोस वदि १० महाराजा श्रीजसवतसिंघजी देवलोक प्राप्त हुआ छै सौ अटक पार तरें घोडै चतुरै कह्या छ । ६५०.११२२ (४६) जाम लापारी नीसाणी आदि-॥०॥ अथ जाम लापानी नीसाणी सिहटप लिप्यते ॥ मो कर भवानी मेहरवानी, अपर आगेवान । वाषान लाइक सुर विनाइक, दै सवाइक दान ।। १ हुन् दान दाइक नरा नाइक, वरनवो सुविहान । रज रीत राषा जाम लाषा, षट्ट भाषा जान ।। अन्त- हुन रूप राजै छवि छाजे, जस कवदा जीह। वह कहत राजसरान बाबत, देसपत सब दीह ॥ २६ हुन दीह साजै धनी दौलत, सत्त दत्त सवाइ । अस्मान जमी ताम अमर, जाम नाम न जाइ ।। ३० इति श्रीनीसारणी जाम लाषारी सपूर्ण ।। ६५३.७४६ जालधरपुराण आदि-॥ श्रीगणेशाय नम ॥ अथ जाल वरपुराण लिप्यते ।। छद बेपाषरी॥ गजमुष गुण भडार गणेसर । सिधि बुधि समपि समोभ्रम सकर । उमया मात उदर उतपना। देमू देव विद्या वरदन्ना ।। अष्षर अजब अछभम आणी। वधवाणो दे अविरल वाणी। विमला कला कमल वाहनी । वेद वरनी चद वदनी ॥ २ अन्त- तोहारो चाकर चिता तूझ । मफेर विजो न चौरासी मूझ ॥ तोरी करि राषि हवै त्रिपरारि । अमै बर मूझ मया अवधारि ।। ३५ इति श्रीजालघर पुराण सपूर्णतामबीभजत् । लिखित प. कुअरकुशलेन ॥
SR No.010593
Book TitleRajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size11 MB
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