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________________ उ० १८ चाउम्मासियमुग्धाइयं] सुत्तागमे ॥ १२५२ ॥ जे भिक्खू अभिसेय(ठा)ट्ठाणाणि वा अक्खाइयट्ठाणाणि वा माणुम्माणट्ठाणाणि वा महया हयणगीयवाइयतंतीतलतालतुडियपडुप्पवाइयट्ठाणाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा साइजइ ॥ १२५३ ॥ जे भिक्खू डिंबाणि वा डमराणि वा खाराणि वा वेराणि वा महाजुद्धाणि वा महासंगामाणि वा कलहाणि वा बोलाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा साइजइ ॥ १२५४ ॥ जे भिक्खू विरूवरूवेसु महुस्सवेसु इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा मज्झिमाणि वा डहराणि वा अणलकियाणि वा सुअलंकियाणि वा गायंताणि वा वायंताणि वा णचंताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहंताणि वा विउलं असणं वा ४ परिभायंताणि वा परिभुंजंताणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा साइज्जइ ॥ १२५५ ॥ जे भिक्खू इहलोइएसु वा सद्देसु परलोइएसु वा सद्देसु दिढेसु वा सद्देसु अदिढेसु वा सद्देसु सुएसु वा सद्देसु असुएसु वा सद्देसु विण्णाएसु वा सद्देसु. सज्जइ रजइ गिज्झइ अज्झोववजइ सज्जंतं रजंतं गिझंतं अज्झोववजंतं वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥ १२५६ ॥ णिसीहऽज्झयणे सत्तरसमो उद्देसो समत्तो ॥ १७ ॥ अट्ठारसमो उद्देसो __ जे भिक्खू अणट्ठाए णावं दुरूहइ दुरुहंतं वा साइजइ ॥ १२५७ ॥ जे भिक्खू णावं किणइ किणावेइ कीयं आहठ्ठ देजमाणं दुरूहइ दुरुहंतं वा साइजइ ॥ १२५८॥ जे भिक्खू णावं पामिच्चइ पामिच्चावेइ पामिच्चं आहह देजमाणं दुरूहइ दुरुहंतं वा साइजइ ॥ १२५९ ॥ जे भिक्खू णावं परियट्टेइ परियडावेइ परियह आह१ देजमाणं दुरूहइ दुव्हतं वा साइजइ ॥ १२६० ॥ जे भिक्खू णावं अच्छेजं अणिसिटुं अभिहडं आह९ देजमाणं दुरूहइ दुरूहंतं वा साइज्जइ ॥ १२६१ ॥ जे भिक्खू थलाओ णावं जले ओकसावेइ ओकसावेंतं वा साइजइ ॥ १२६२ ॥ जे भिक्खू जलाओ णावं थले उकसावेइ उकसावेंतं वा साइजइ ॥ १२६३ ॥ जे भिक्खू पुण्णं णावं उस्सिचइ उस्सिचंतं वा साइजइ ॥ १२६४ ॥ जे भिक्खू सणं णावं उप्पिलावेइ उप्पिलावेंतं वा साइजइ ॥ १२६५ ॥ जे भिक्खू उबद्धियं णावं उत्तिंगं वा उदगं वा आसिंचमाणिं वा उवरुवरि वा कज्जलावेमाणिं पेहाए हत्थेण वा पाएण वा असिपत्तेण वा कुसपत्तेण वा मट्टियाए वा चेलेण वा पडिपिहेइ पडिपिहेंतं वा साइजइ ॥ १२६६ ॥ जे भिक्खू पडिणावियं कुटु णावाए दुल्हइ दुरूहंतं वा साइजइ ॥ १२६७ ॥ जे भिक्खू उडुगामिणिं वा णावं अहोगामिणिं वा णावं दुरूहइ दुरूहंतं
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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