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________________ उ० ३ मासियमुग्धाइयं] सुत्तागमे ८५७. वा कक्केण वा उल्लोलेज वा उव्वटेज वा उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा साइज्जइ ॥ १६८ ॥ जे भिक्खू अप्पणो उढे सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोवेज वा उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइजइ ॥ १६९ ॥ जे भिक्खू अप्पणो उढे झूमेज वा रएन वा फूमतं वा रएंतं वा साइजइ ॥१७० ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं उत्तरोट्ठरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्पेंतं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥ १७१ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं अच्छिपत्ताई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ ॥ १७२ ॥ जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि आमजेज वा पमज्जेज वा आमजतं वा पमजतं वा साइज्जइ ॥ १७३ ॥ जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि संवाहेज वा पलिमद्देज वा संवाहेंतं वा पलिमद्देतं वा साइज्जइ ॥१७४ ॥ जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेतं वा साइजइ ॥ १७५ ॥ जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि लोद्धेण वा ककेण वा उल्लोलेज वा उबट्टेज वा उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा साइजइ ॥ १७६ ॥ जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोवेज वा उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइज्जइ ॥ १७७ ॥ जे भिक्खू अप्पणो अच्छीणि फूमेज वा रएज वा फूमेंतं वा रएंतं वा साइजइ ॥ १७८ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं भुमगरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥ १७९ ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं पासरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ ॥१८० ॥ जे भिक्खू अप्पणो दीहाई केसरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ ॥ १८१ ॥ जे भिक्खू अप्पणो कायाओ सेयं वा जलं वा पंकं वा मलं वा णीहरेज वा विसोहेज वा णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा साइज्जइ ॥ १८२ ॥ जे भिक्खू अप्पणो अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णीहरेज वा विसोहेज वा णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा साइजइ ॥ १८३ ॥ जे भिक्खू गामाणुगामं दूइजमाणे अप्पणो सीसदुवारियं करेइ करेंतं वा साइजइ ॥१८४॥ जे भिक्खू सणकप्पा(सा)सओ वा उण्णकप्पासओ वा पोण्डकप्पासओ वा अमिलकप्पासओ वा वसीकरणसोत्तियं करेइ करेंतं वा साइजइ ॥ १८५ ॥ जे भिक्खू गिहंसि वा गिहमुहंसि वा गिहदुवारियसि वा गिहपडिदुवारियसि वा गिहेलुयंसि वा गिहंगणंसि वा गिहवच्चंसि वा उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ परिद्ववेतं वा साइजइ ॥१८६॥ जे भिक्खू मडगगिहंसि वा मडगछारियसि वा मडगथूभियंसि वा मडगासयंसि वा मडगलेणंसि वा मडगथंडिलंसि वा मडगवच्चंसि वा उच्चारं वा पासवणं वा परिहवेइ परिहवेंतं वा साइजइ ॥ १८७ ॥ जे भिक्खू
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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