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________________ सुत्तागमे [णिसीहसुत्तं ॥ ११३ ॥ जे भिक्खू इत्तरियपि उवहिं ण पडिलेहेइ ण पडिलेहेंतं वा साइज्जइ। तं सेवमाणे आवजइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥ ११४ ॥ णिसीहऽज्झयणे बीओ उद्देसो समत्तो ॥२॥ तइओ उद्देसो जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा असणं वा ४ ओभासिय २ जायइ जायंतं वा साइजइ ॥ ११५॥ एवं अण्णउत्थिया वा गारत्थिया वा, अण्णउत्थिणी वा गारत्थिणी वा, अण्णउत्थिणीओ वा गारत्थिणीओ वा असणं वा ४ ओभासिय २ जायइ जायंतं वा साइजइ ॥ ११६-११७-११८ ॥ जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा कोउहल्लपडियाए पडियागयं समाणं अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा, अण्णउत्थिया वा गारत्थिया वा, अण्णउत्थिणी वा गारत्थिणी वा, अण्णउत्थिणीओ वा गारत्थिणीओ वा असणं वा ४ ओभासिय २ जायइ जायंतं वा साइजइ ॥ ११९-१२०-१२१-१२२ ॥ जे जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा, अण्णउत्थिएहि वा गारथिएहि वा, अण्णउत्थिणीए वा गारत्थिणीए वा, अण्णउत्थिणीहि वा गारत्थिणीहि वा असणं वा ४ अभिहडं आहट दिजमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय २ परिवेढिय २ परिजविय २ ओभासिय २ जायइ जायंतं वा साइजइ ॥ १२३-१२४-१२५-१२६ ॥ जे भिक्खू गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविढे पडियाइक्खिए समाणे दोच्च(पि) तमेव कुलं अणुप्पविसइ अणुप्पविसंतं वा साइजइ ॥ १२७ ॥ जे भिक्खू संखडिपलोयणाए असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥ १२८ ॥ जे भिक्खू गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविढे समाणे परं तिघरंतराओ असणं वा ४ अभिहडं आहठ दिजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥ १२९ ॥ जे भिक्खू अप्पणो पाएं आमज्जेज वा पमज्जेज वा आमजंतं वा पमज्जंतं वा साइजइ ॥ १३० ॥ जे भिक्खू अप्पणो पाए संवाहेज वा पलिमद्देज वा संवाहेंतं वा पलिमद्देतं वा साइजइ ॥ १३१ ॥ जे भिक्खू अप्पणो पाए तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा मक्खेज वा अब्भंगेज वा मक्खेंतं वा अभंगेंतं वा साइजइ ॥ १३२ ॥ जे भिक्खू अप्पणो पाए लोद्धेण वा कक्केण वा (०) उल्लोलेज वा उव्वट्टेज वा उल्लोलेंतं वा उव्वदे॒तं वा साइजइ ॥ १३३ ॥ जे भिक्खू अप्पणो - १ सोभाए। ........ HHHHHHHHI THHTHHTHHTHERE HHHHHHHin
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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