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________________ ८४६ सुत्तागमे [बिहक्कप्पसुत्तं नो कप्पइ निग्गन्थीए एगाणियाए गामाणुगामं दूइजित्तए (वासावासं (वा) वत्थए) ॥ १५७ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए अचेलियाए होत्त(हुंत)ए ॥ १५८ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए अपाइयाए होत्तए ॥ १५९ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए वोसट्ठकाइयाए होत्तए ॥ १६०॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए बहिया गामस्स वा जाव (रायहाणीए) संनिवेसस्स वा उई बाहाओ पगिज्झिय २ सूराभिमु(ही)हाए एगपाइयाए ठिच्चा आयावणाए आयावेत्तए ॥ १६१ ॥ कप्पइ से उवस्सयस्स अन्तो वगडाए संघाडिपडिबद्धाए समतलपाइयाए ठिच्चा आयावणाए आयावेत्तए ॥ १६२ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए ठाणाइयाए होत्तए ॥ १६३ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए पडिमट्ठावियाए होत्तए ॥ १६४ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए ठाणुक्कडियासणियाए होत्तए ॥ १६५॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए ने(सि)सज्जियाए होत्तए ॥ १६६ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए वीरासणियाए होत्तए ॥ १६७ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए दण्डा(ई)सणियाए (पलम्बियबाहाए) होत्तए ॥ १६८ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए लगण्डसाइयाए होत्तए ॥ १६९ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए ओमंथियाए होत्तए ॥ १७० ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए उत्ता(णसाइ)णियाए होत्तए ॥१७१॥ नो कप्पइ निग्गन्थीए अम्बखुजियाए होत्तए ॥ १७२ ॥ नो कम्पइ निग्गन्थीए एगपासियाए होत्तए ॥ १७३ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीणं आउञ्चणपट्टगं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ १७४ ॥ कप्पइ निग्गन्थाणं आउञ्चणपट्टगं धारेत्तए वा परिहरि(वहि)त्तए वा ॥ १७५ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीणं सा(वा)वस्सयंसि आस(णयं)णंसि आसइ(चिट्ठि)त्तए वा तुयटि(निसिइ)त्तए वा ॥ १७६ ॥ कप्पइ निग्गन्थाणं सावस्सयंसि आसणंसि आसइत्तए वा तुयट्टित्तए वा ॥ १७७ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीणं सविसा(णयं)णंसि फलगंसि वा पी(ढगं)ढंसि वा चिट्ठित्तए वा निसीइत्तए वा (आसइत्तए वा तुयट्टित्तए वा) ॥ १७८ ॥ कप्पइ निग्गन्थाणं जाव निसीइत्तए वा ॥ १७९ ॥ नो कप्पड निग्गन्थीणं (सना(ला)लयाई पायाई अहिट्टित्तए) सवेण्टयं लाउयं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ १८० ॥ कप्पइ निग्गन्थाणं सवेण्टयं लाउयं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ १८१॥ नो कप्पइ निग्गन्थीणं स(विट्ट)वे(ढिया-ओ)ण्टयं पायकेसरि(याओ)यं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ १८२॥ कप्पइ निग्गन्थाणं सवेण्टयं पायकेसरियं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ १८३ ॥ नो १ जत्था भिणवसंकडमुहे अलाउए हत्थो ण माइ तस्स अलाउणो जमुञ्चत्तं तप्पमाणो दंडो किजइ, तस्सग्गभागे बद्धा जा पञ्चुवेक्खणिया सा पायकेसरिया सविंटया भण्णइ।
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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