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________________ सुत्तागमे [ बिहक्कप्पसुतं अणुप्पदेजा; एग (न्तमन्ते बहुफासुए (पएसे ) थण्डिले पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिवेयव्वे सिया; तं अप्पणा भुञ्जमाणे अन्नेसिं वा अणुप्पदेमाणे आवज्जइ चाउम्मा सियं परिहारद्वाणं उ (अणु) ग्घाइयं ॥ ११९ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा असणं वा ४ परं अद्धजोयणमे (रं) राए उवाइणावेत्तए, से य आहच्च उवाइणाविए सिया, तं नो अप्पणा भुञ्जेजा नो अन्नेसिं अणुप्पदेज्जा, एगन्ते बहुफासुए थण्डिले पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिवेयव्वे सिया; तं अप्पणा भुञ्जमाणे अन्नेसिं वा अणुप्पदेमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारद्वाणं उग्घाइयं ॥ १२० ॥ निग्गन्थेण य गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुप्पविद्वेणं अन्नयरे अचित्ते अणेसणिज्जे पाणभोयणे डिग्गाहिए सिया, अत्थि याइं थ केइ सेह ( - ) तराए अणुवट्ठावियए, कप्पर से तस्स दावा अणुप्पदा वा ; नत्थि याइं थ केइ सेहतराए अणुवट्ठावियए (सिया), तं नो अप्पणा भुञ्जजा नो अन्नेसिं अणुप्पदेजा; एगन्ते बहुफासुए थण्डिले पडिलेहित्ता मजित्ता परिवेयव्वे सिया ॥ १२१ ॥ जे कडे कप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं, जे कडे कप्पट्ठियाणं कप्पर से अकप्पट्ठियाणं; जे कडे अकम्पट्ठियाणं नो से कप्पर कप्पट्ठियाणं, जे कडे अकम्पट्ठियाणं कप्पर से अकप्पट्ठियाणं; कप्पट्टिया विकप्पे ठिया कप्पडिया, अकप्पे ठिया अकप्पट्टिया ॥ १२२ ॥ भिक्खू य गणा ( ओ अ ) यवक्कम्म इच्छेजा अ (न्न )न्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता (पं) आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्तिं वा थेरं वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कम्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, ते य से विय ( रेज्जा) र न्ति, एवं से कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए; ते य से नो वियरन्ति, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए । १२३ ॥ गणावच्छेइए य गणायवक्कम्म इच्छेना अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कम्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए; कप्पड़ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरन्ति एवं से कप्पर अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरितए; ते य से नो वियरन्ति एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित ॥ १२४ ॥ आयरियउवज्झाए य गणायवक्कम्म इच्छेजा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स आयरिय ८४०
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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