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________________ उ०३ सेज्जासंथारयगहण०] सुत्तागमे ८३७ तइओ उद्देसओ नो कप्पइ निग्गन्थाणं निग्गन्थीणं उवस्स(यंसि)ए आसइत्तए वा चिट्ठित्तए वा निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा निदाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, असणं वा ४ आहारमाहारेत्तए, उच्चारं वा पासवणं वा खेलं वा सिङ्घाणं वा परिवेत्तए, सज्झायं वा करेत्तए, झाणं वा झाइत्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए ॥ ७९ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थीणं निग्ग(थ)थाणं उवस्सए आसइत्तए जाव ठाइत्तए ॥ ८० ॥ नो कप्पड़ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा कसिणाई वत्थाई धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ८१॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अकसिणाई वत्थाई धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ८२ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अभिन्नाइं वत्थाइं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ८३ ॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा भिन्नाइं वत्थाई धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ८४ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाणं ओ(उ)रगहणन्तगं वा ओग्गहणपट्टगं वा धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ८५ ॥ कप्पइ निग्गन्थीणं ओग्गहणन्तगं वा ओग्गहणपट्टगं वा धारेत्तए वा परिहरित्तए वा ॥ ८६ ॥ निग्गन्थीए य गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुप्पविट्ठाए चेलटे समुप्पज्जेजा, नो से कप्पइ अप्पणो नीसाए चेलं पडिग्गाहेत्तए; कप्पइ से पवत्तिणीनीसाए चेलं पडिग्गाहेत्तए ॥ ८७ ॥ नो (य से) ज(त)त्थ पवत्तिणी समा(णा)णी सिया, जे तत्थ समाणे आयरिए वा उवज्झाए वा प(वि)वत्ती वा थेरे वा गणी वा गणहरे वा गणावच्छेइए वा (जं चऽन्नं पुरओ कट्टु विहरइ), कप्पइ से तं(तेसिं)नी(निस)साए चेलं पडिग्गाहेत्तए ॥ ८८ ॥ निग्गन्थस्स (य) णं तप्पढमयाए संपव्वयमाणस्स कप्पइ रयहरणपडिग्गहगोच्छगमायाए ति(हिं)हि य कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए, से य पुचोवट्ठविए सिया, एवं से नो कप्पइ रयहरणपडिग्गहगोच्छगमायाए तिहि य कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए; कप्पइ से अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं गहाय आयाए संपव्वइत्तए ॥ ८९ ॥ निग्गन्थीए णं तप्पढमयाए संपन्वयमाणीए कप्पइ रयहरणपडिग्गहगोच्छगमायाए चउहि य कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए, सा य पुव्वोवट्ठविया सिया, एवं से नो कप्पइ रयहरणपडिग्गहगोच्छगमायाए चउहि य कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए; कप्पइ से अहापरिग्गहियाइं वत्थाई गहाय आयाए संपव्वइत्तए ॥ ९० ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा पढमसमोसरणुद्देसपत्ताई चेला(चीवरा)इं पडिग्गाहेत्तए ॥ ९१ ॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा दोचसमोसरणुद्देसपत्ताई चेलाइं पडिग्गाहेत्तए ॥ ९२ ॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा आ(अ)हाराइणियाए चेलाइं पडिग्गाहेत्तए ॥ ९३ ॥ कप्पइ निग्ग
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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