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________________ उ० ७ तिवासपरिया०] सुत्तागमे ८१७ ॥ १८० ॥ जे णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ (णिग्गंथे) पारोक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पच्चक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, जत्थेव अण्णमण्णं पासेज्जा तत्थेव एवं वएजा-अह णं अजो! तु(म)माए साद्धिं इमम्मि कारणम्मि पच्चक्खं संभोगं विसंभोगं करेमि, से य पडितप्पेजा एवं से नो कप्पइ पच्चक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, से य नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पञ्चक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए ॥ १८१॥ जाओ णिग्गंथीओ वा णिग्गंथा वा संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ (णिग्गंथीओ) पच्चक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पारोक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, जत्थेव ताओ अप्पणो आयरियउवज्झाए पासेज्जा, तत्थेव एवं वएजा-अह णं भंते ! अमुगीए अजाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएकं संभोगं विसंभोगं करेमि, सा य से पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएकं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, सा य से नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए ॥ १८२ ॥ नो कप्पइ णिग्गंथाणं णिग्गंथिं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा (सिक्खावेत्तए वा) सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १८३ ॥ कप्पइ णिग्गंथाणं णिग्गंथिं अण्णेसिं अट्ठाए पव्वावेत्तए वा जाव संभुजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १८४ ॥ नो कप्पइ णिग्गंथीणं णिग्गंथं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा जाव उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १८५॥ कप्पइ णिग्गंथीणं णिग्गंथं णिग्गंथाणं अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा जाव उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥१८६॥ नो कप्पइ णिग्गंथीणं विइकिट्ठियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १८७॥ कप्पइ णिग्गंथाणं विइकिट्ठियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १८८॥नो कप्पइ णिग्गंथाणं विइकिट्ठाई पाहुडाई विओसवेत्तए॥१८९॥ कप्पइ णिग्गंथीणं विइकिट्ठाई पाहुडाइं विओसवेत्तए ॥ १९० ॥ नो कप्पइ णिग्गंथा(ण वा णिग्गंथीण वा)णं विइकिट्ठए काले सज्झायं (उद्दिसित्तए वा) करेत्तए (वा) ॥ १९१ ॥ कप्पइ णिग्गंधीणं विइकिट्ठए काले सज्झायं करेत्तए णिग्गंथणिस्साए ॥ १९२ ॥ नो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा असज्झाइए सज्झायं करेत्तए ॥ १९३ ॥ कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा सज्झाइए सज्झायं करेत्तए ॥ १९४ ।। नो कप्पइ णिगंथाण वा णिग्गंथीण वा अप्पणो असज्झाइए सज्झायं करेत्तए, कप्पइ ण्हं अण्णमण्णस्स वायणं दलइत्तए ॥ १९५ ॥ तिवासपरियाए समणे णिग्गंथे ५२ सुत्ता
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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