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________________ ८१४ सुत्तागमे [ववहारो मीति नो संठवेजा, एवं से नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥ १४८॥ थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिन्भटे सिया, कप्पइ तेसिं संठवेत्ताण वा असंठवेत्ताण वा आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १४९ ॥ थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भटे सिया, कप्पइ तेसिं संनिसण्णाण वा संतुयट्टाण वा उत्ताणयाण वा पासिल्लयाण वा आयारपकप्पं नामं अज्झयणं दोच्चं पि तच्चं पि पडिपुच्छित्तए वा पडिसारेत्तए वा ॥ १५० ॥ जे णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स अंतिए आलोएत्तए, अत्थि याइं (थ) ण्हं केइ आलोयणारिहे, कप्पइ ण्हं तस्स अंतिए आलोइत्तए, नत्थि याइं ण्हं केइ आलोयणारिहे, एव ण्हं कप्पइ अण्णमण्णस्स अंतिए आलोएत्तए ॥ १५१॥ जे णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ अण्णम(ण्णस्स अंतिए)ण्णेणं वेयावच्चं कारवेत्तए, अस्थि याइं ण्हं केइ वेयावच्चकरे कम्पइ ग्रहं वेयावच्चं कारवेत्तए, नत्थि याइं ण्हं केइ वेयावच्चकरे एव ण्हं कप्पइ अण्णमण्णेणं वेयावच्चं कारवेत्तए ॥१५२॥ णिग्गंथं च णं राओ वा वियाले वा दीहपट्ठो लूसेज्जा, इत्थी वा पुरिसस्स ओमावेजा पुरिसो वा इत्थीए ओमावेजा, एवं से कप्पइ, एवं से चिट्ठइ, परिहारं च से न(णो) पाउणइ-एस कप्(पो)पे थेरकप्पियाणं, एवं से नो कप्पइ, एवं से नो चिट्ठइ, परिहारं च नो पाउणइ-एस कप्पे जिणकप्पियाणं ॥ १५३ ॥ ति-बेमि ॥ ववहारस्स पंचमो उद्देसओ समत्तो ॥ ५॥ ववहारस्स छट्टो उद्देसओ भिक्खू य इच्छेना नायविहं एत्तए, नो (से) कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता नायविहं एत्तए, कप्पइ (से) थेरे आपुच्छित्ता नायविहं एत्तए, थेरा य से वियरेजा, एवं से कप्पइ नायविहं एत्तए, थेरा य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ नायविहं एत्तए, जं (जे) तत्थ थेरेहिं अविइण्णे नायविहं एइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ १५४ ॥ नो से कप्पइ अप्पसुयस्स अप्पागमस्स एगाणियस्स नायविहं एत्तए ॥ १५५ ॥ कप्पइ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्भागमे तेण सद्धिं नायविहं एत्तए ॥ १५६ ॥ तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिग्गा(हि)हेत्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए॥ १५७ ॥ तत्थ से पुव्वागमणेणं पुवाउत्ते भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए, नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिग्गाहेत्तए ॥ १५८ ॥ तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पुवाउत्ते कप्पइ से दो वि पडिग्गाहेत्तए ॥ १५९ ॥ तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पच्छाउत्ते नो से कप्पइ दो वि पडिग्गाहेत्तए ॥ १६० ॥ जे से तत्थ पुव्वा
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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