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________________ सुत्तागमे [ववहारो संवच्छरेहिं वीइकतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स एवं से कंप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ९३ ॥ भिक्खू य बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावजीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पड़ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ९४ ॥ गणावच्छेइए बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसाबाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ९५ ॥ आयरियउवज्झाए बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ९६ ॥ बहवे भिक्खुणो बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ९७ ॥ बहवे गणावच्छेइया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसुः कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ९८ ॥ बहवे आयरियउवज्झाया बहस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाडागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ९९ ॥ बहवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरियउवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ. आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तएं वा धारेत्तए वा ॥ १०० ॥ ति-बेमि ॥ ववहारस्स तइओ उद्देसओ समत्तो ॥३॥ . ववहारस्स चउत्थो उद्देसओ - नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स एगाणियस्स हेमन्तगिम्हासु चरि(त्त)ए॥१०१॥ कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चरि(चार)ए ॥ १०२ ॥ नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चरिए ॥ १०३ ॥ कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स हेमंतगिम्हासु चरिए ॥ १०४ ॥ नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पबिइयस्स वासावासं वत्थए ॥ १०५ ॥ कप्पइ आयरियउवज्झायस्सं अंप्पतइयस्स वासावासं वत्थए ॥ १०६ ॥ नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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