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________________ सुत्तागमे [ववहारो आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ७६ ॥ अठ्ठवासपरियाए समणे णिग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पण्णत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे अभिन्नायारे असबलायारे असंकिलिट्ठायारचित्ते बहुस्सुए बब्भागमे जहण्णेणं ठाणसमवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ७७ ॥ सच्चेव णं से अट्ठवासपरियाए समणे णिग्गंथे नो आयारकुसले नो संजमकुसले नो पवयणकुसले नो पण्णत्तिकुसले नो संगहकुसले नो उवग्गहकुसले खयाथारे भिन्नायारे सबलायारे संकिलिट्ठायारचित्ते अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ७८ ॥ निरुद्धपरियाए समणे जिग्गंथे कप्पइ तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए, से किमाहु भंते ? अत्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कडाणि पत्तियाणि थेजाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अणुमयाणि बहमयाणि भवंति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहि तेहिं थेजेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं तेहिं अणुमएहिं तेहिं बहुमएहिं जं से निरुद्धपरियाए समणे णिग्गंथे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्ताए तद्दिवसं ॥ ७९ ॥ निरुद्धवासपरियाए समणे णिग्गंथे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए समुच्छेयकप्पंसि, तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अवट्ठिए, से य अहिज्जिस्सामित्ति अहिज्जेज्जा, एवं से कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए, से य अहिजिस्सामित्ति नो अहिजेजा, एवं से नो कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ८० ॥ णिग्गंथस्स णं नवडहरतरुणस्स आयरियउवज्झाए वी(सु)संभेजा, नो से कप्पइ अणायरियउवज्झायस्स होत्तए, कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं, से किमाहु भंते ? दुसंगहिए समणे णिग्गंथे, तंजहा-आयरिएणं उवज्झाएण य ॥ ८१ ॥ णिग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए आयरियउवज्झाए प(वि)वत्तिणी य वीसंभेजा, नो से कप्पइ अणायरियउवज्झाइयाए अपवत्तिणीए होत्तए, कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणिं, से किमाहु भंते ? तिसंगहिया समणी णिग्गंथी, तंजहा-आयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य ॥ ८२॥ भिक्खू गणाओ अणिक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेविजा, जावजीवाए तस्स तप्पत्तियं नो से कप्पइ आयरियत्तं वा उवज्झायत्तं वा पवत्तित्तं वा थेरत्तं वा गणित्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारित्तए वा ॥ ८३ ॥ भिक्खू य गणाओ अवकम्म मेहुणधम्म पडिसेवेजा, तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, तिहिं संवच्छरेहिं वीइकंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि प(उव)ट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स (णिव्विकारस्स) एवं से
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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