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________________ पंचमज्झयणसमत्ती] सुत्तागमे ७८७ अङ्गाई अहिज्जइ २ त्ता बहूहिं छट्टमदसमदुवालस जाव भावमाणी बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ २ त्ता मासियाए संलेहणाए सहिँ भत्ताई अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिकन्ता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा सक्कस्स देविन्दस्स देवरन्नो सामाणियदेवत्ताए उववजिहिइ । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दो सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता, तत्थ णं सोमस्सवि देवस्स दो सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता ॥ १३९ ॥ से णं भन्ते ! सोमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ कहिं उववजिहिइ ? गोयमा! महाविदेहे वासे जाव अन्तं काहिइ । निक्खेवओ ॥ १४० ॥ चउत्थं अज्झयणं समत्तं ॥ ३॥ ४॥ जइ णं भंते ! समणेणं० उक्खेवओ। एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे । गुणसिलए उज्जाणे । सेणिए राया । सामी समोसरिए । परिसा निग्गया ॥ १४१॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं पुण्णभद्दे देवे सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे सभाए सुहम्माए पुण्णभइंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जहा सूरियाभो जाव बत्तीसइविहं नट्टविहिं उवदंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। कूडागारसाला । पुव्वभवपुच्छा । एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे मणिवइया नामं नयरी होत्था, रिद्ध० । चन्दो राया। ताराइण्णे उज्जाणे । तत्थ णं मणिवइयाए नयरीए पुण्णभद्दे नाम गाहावई परिवसइ, अड्डे । तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवन्तो जाइसंपन्ना जाव जीवियासमरणभयविप्पमुक्का बहुस्सुया बहुपरिवारा पुव्वाणुपुट्विं जाव समोसढा । परिसा निग्गया। तए णं से पुण्णभद्दे गाहावई इमीसे कहाए लढे० हट्ठ० जाव जहा पण्णत्तीए गङ्गदत्ते तहेव निग्गच्छइ जाव निक्खन्तो जाव गुत्तबम्भयारी ॥ १४२ ॥ तए णं से पुण्णभद्दे अणगारे भगवन्ताणं अन्तिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अङ्गाइं अहिजइ २ त्ता बहूहिं चउत्थछट्ठम जाव भावित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ २ त्ता मासियाए संलेहणाए सर्हि भत्ताइं अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि जाव भासामणपजत्तीए ॥ १४२ ॥ एवं खलु गोयमा ! पुण्णभद्देणं देवेणं सा दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमन्नागया । पुण्णभद्दस्स णं भन्ते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! दो सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता । पुण्णभद्दे णं भन्ते ! देवे ताओ देवलोयाओ जाव कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अन्तं काहिइ । निक्खेवओ ॥ १४३ ॥ पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ ३ ॥५॥
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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