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________________ र्थता, दुर्गतिगमन, चित्तका मोक्ष होना । १४ वेंमें छ जीवोंका पूर्वभव, इपुकार नगरमें जन्म और फिर पारस्परिक मिलाप, अन्तमें भृगुपुरोहितकी पत्नी यशा और उनके दो पुत्र, इषुकार राजा और कमलावती रानीका एक दूसरेके कारण वैराग्यलाभ, दीक्षाग्रहण एवं मोक्षप्राप्ति । १५ वेंमें भिक्षुके लक्षण और गुण । १६ वेंमें ब्रह्मचर्यके १० असमाधिस्थान । १७ वेमें पापश्रमणका स्वरूप । १८ वेमें संयति राजाका मृगयाके लिए जाना, उद्यानमें गर्दभालि मुनिका उपदेश, राजाका दीक्षाग्रहण और मुक्ति-प्राप्ति । १९ में राजकुमार मृगापुत्र का साधुको देखकर जातिस्मरण, माता पितासे संवाद, नरकादि गतियोंके दुःखोंका वर्णन, संयमग्रहण, मोक्षप्राप्ति । २० वेमें श्रेणिक नरेशका अनाथीमुनिका दर्शन प्राप्त करना, सनाथता अनाथताका स्वरूप, राजाकी धर्ममें दृढ़ श्रद्धा होना । २१ वेमें समुद्रपालका वध्य चोरको देखना, संवेदप्राप्ति, दीक्षाग्रहण तथा मोक्ष । २२ वेमें भगवान् अरिष्टनेमिका विवाह के लिए जाना, पशु पक्षियों पर करुणा ला कर उन्हें बंधनमुक्त कराना, दीक्षाग्रहण, सती राजीमतीको गुफामें देखकर रथनेमिका संयमसे विचलित होना, सतीके उपदेश द्वारा उसका पुनः संयममें स्थिर होना, अन्तमें मोक्षप्राप्ति । २३ वेमें मुनि केशीकुमार और गौतमस्वामीका संवाद, अन्नमें केशीश्रमण द्वारा भगवान् महावीर कथित पांच महाव्रतों का स्वीकार । २४ वेमें पांच समिति और तीन गुप्ति, इन आठ प्रवचन-माताओंका वर्णन । २५ वेमें जयघोष विजयघोषका चरित्र, ब्राह्मणके यथार्थ लक्षण । २६ वेमें १० सामाचारी और साधुकी दिनरात्रिचर्या का कथन । २७ वेमें गर्गाचार्य द्वारा अविनीत शिष्योंका त्याग । २८ वेमें मोक्षमार्गमें गतिमान होनेके उपाय । २९ घेमें सम्यक्त्व पराक्रमके ७३ बोल, उनका फल । ३० में बाह्य और अभ्यंतर तपका विवरण । ३१ वेमें चरणविधि । ३२ वेमें प्रमादस्थान और उनसे बचे रहने के उपाय । ३३ वेमें आठों कर्मोंका विस्तारपूर्वक वर्णन । ३४ वेमें छहों लेश्याओंके नाम, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थिति आदिका विस्तृत वर्णन । ३५ वेमें साधुके गुण और ३६ वें अध्ययनमें जीव तथा अजीवके भेद विस्तारसे बताए हैं। शातपुत्र महावीर भगवान्ने मोक्ष पाने के समय यह सूत्र फर्माया था, जैसा कि कथित सूत्रकी अन्तिम गाथासे स्पष्ट है। इइ पाउकरे बुद्धे, णायए परिणिवुए। छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धीयसंमए ॥ २७१ ॥ इसी स्मृतिको बनाए रखने के लिए दिवालीसे अगले दिन अर्थात् कार्तिक शुक्ला
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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