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________________ आत्मश्रद्धा पाकर व्रतग्रहणादि विषय वर्णित हैं । यह सूत्र साहित्यका रसप्रद ग्रंथ है ऐसा विंटरनिट्ज़ का कहना है । तृतीय उपांग-जीवाजीवाभिगममें जीव अजीवका विस्तृत स्वरूप, विजयदेवका वर्णन, छप्पन अन्तरद्वीपादिका उल्लेख है। चतुर्थ उपांग-प्रज्ञापनासूत्र में जीव, अजीव, आस्रव, वंध, संवर, निर्जरा और मोक्षका सम्यक् निरूपण है। इसके अतिरिक्त लेश्या, समाधि, लोकस्वरूप आदिका वर्णन भी है, इसमें ३६ पद (प्रकरण ) हैं। इसके संकलनकर्ता श्रीसुधर्माचार्यसे २३ वें पट्टस्थित आर्य श्यामाचार्य थे । प्र-प्रकर्षतया, ज्ञापना-अवबोध करना प्रज्ञापना, अर्थात् जिसमें पदार्थका परिपूर्णरूपसे स्वरूप जाना जा सके। पंचम उपांग-जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिमें जंबूद्वीपका सविस्तर वर्णन है। कालचक्र, ऋषभदेव भगवान् और भरत चक्रवर्तीका जीवनचरित्र भी वर्णित है। वास्तवमें यह भूगोलविषयक ग्रंथ है ऐसा विंटरनिट्ज़ का कहना है।। छठे एवं सातवें उपांग-चंद्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्तिमें चंद्र तथा सूर्यादि ज्योतिषचक्रका वर्णन है । दोनोंके आरंभ-क्रमके थोड़ेसे भेदके अतिरिक्त शेष सब पाठ समान हैं । इनके २० प्राभृत हैं । जिनमें मण्डलगति संख्या, सूर्यका तिर्यक् परिभ्रमण, प्राकाश्य क्षेत्र परिमाण, प्रकाश संस्थान, लेश्या प्रतिघात, ओजःसंस्थिति, सूर्यावारक, उदयसंस्थिति, पौरुषी छाया प्रमाण, योगस्वरूप, संवत्सरोंका आदि अन्त, संवत्सरोंके भेद, चंद्रमाकी वृद्धि अपवृद्धि, ज्योत्ला प्रमाण, शीघ्रगति निर्णय, ज्योत्स्ना लक्षण, च्यवन तथा उपपात, चन्द्रसूर्यादिकी उंचाई, उनका परिमाण, चन्द्रादिका अनुभाव वर्णित है । ये दोनों उपांग खगोल विषयक हैं। ५-६-७ वें उपांगको विटरनिटज़ने वैज्ञानिक ग्रंथ ( Scientific Works) माना है। . आठवें उपांग-निरियावलिकामें मगध-नरेश श्रेणिक (भंभसार-बौद्धसाहित्यमें बिंबिसार ) का कोणिक (अजातशत्रु ) के द्वारा मरण (जिसका उल्लेख बौद्ध ग्रंथोंमें भी पाया जाता है ) आदिका कथन है। इसके अतिरिक्त कालकुमारादिका अपने नाना वैशालिनरेश चेटकके साथ युद्धमें लड़ते हुए मारा जाना, उनकी नारक गति और भविष्यमें मोक्ष होनेका वर्णन है। नवम उपांग-कल्पावतंसिकामें श्रेणिक राजाके १० पौत्र पद्मकुमारादिका भगवान् महावीर प्रभुकी सेवामें दीक्षाग्रहण, देवगतिगमन और भविष्यमें मोक्ष होनेका कथन है। इसके १० अध्ययन हैं।
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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