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________________ ५७ १२ अयुक्तदोष-जिसमें युक्तिशून्यता हो । १३ क्रमभिन्नदोष-अनुक्रमरहित।। १४ वचनभिन्नदोष-जिसमें वचनकी गड़बड़ हो । १५ विभक्तिभिन्नदोष-विभक्तिका वैपरीत्य । १६ लिंगभिन्नदोष-तीनों लिंगोंमें फेरफार हो । १७ अनभिहितदोष-अपने सिद्धान्तके विरुद्ध हो । २८ अपददोप-जिसमें छांदिक त्रुटियां हों। १९ स्वभावहीनदोष-जिसमें वस्तुस्वभावके विरुद्ध कथन हो । जैसे-'आग शीतल होती है।' २० व्यवहितदोष-जो अप्रासंगिक हो। २१ कालदोष-जिसमें भूतकालके स्थानमें वर्तमान तथा वर्तमानके स्थानमें भूतकालका प्रयोग हो अर्थात् कालसंबंधी अशुद्धिएँ हों। २२ यतिदोष-जिसमें विश्राम चिन्हों की अशुद्धियाँ हों। २३ छविदोष-अलंकारशून्य । २४ समयविरुद्धदोष-अपने मत से विरुद्धता । २५ वचनमात्रदोष-निर्हेतुकता। २६ अर्थापत्तिदोष-जिसके अर्थमें आपत्ति हो सके। २७ असमासदोष-जिसमें समासकी प्राप्ति होने पर भी समास न किया गया हो। २८ उपमादोष-जिसमें हीन अथवा अधिक या निरुपम उपमाएँ दी गई हों। २९ रूपकदोष-अधूरा वर्णन। ३०निदेशदोप-जिसमें निर्दिष्ट पदोंकी एकवाक्यता न हो। ३१ पदार्थदोष-जो पर्यायको पदार्थ और पदार्थको पर्याय कहे। ३२ संघिदोष-जिसमें जहां संधिकी प्राप्ति हो वहां न की हो, अथवा अयुक्त रीतिसे की गई हो। ३२ अस्वाध्याय-चार संध्या( प्रातःकाल १, मध्याह्नकाल २, संध्याकाल ३, मध्यरात्रि ४) ओंके समय, चार पूर्णिमा एवं महाप्रतिपदाएँ (चैत्रशका १५, वदी १, आषाढशुक्ला १५, वदी १, आश्विन शुक्ला १५, वदी १, कार्तिक शुक्ला १५, वदी १) १२ । औदारिकशरीर-संबंधी १० अस्वाध्याय-अस्थि १३, मांस १४
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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