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________________ ( ४ ) जहेह सीहो व मियं गहाय, मच नर नेइ हु अंतकाले। न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मंगहरा भति ॥ २२ ॥3 अ० १३॥ तं पुत्रपशुसंपन्न, व्यासक्तमनसं नरं । सुप्तं व्याघ्रो मृगमिव, मृत्युरादाय गच्छति ॥ १८ ॥ म. शां. अ.. १४॥ (५) तं इक्कगं तुच्छसरीरगं से, चिईगयं दहिर पावगेणं । भज्जा य पुत्ता वि य णायओ य, दायारमणं अणुसंकमति ॥ २५ ॥ अ० १३ ॥ उत्सृज्य विनिवर्तते, ज्ञातयः मुहृदः सुताः । अपुष्पानफलान् वृक्षान् , यथा तात! पतत्रिणः ॥ १७॥ म.उ. अ... || (६) अब्भायम्मि लोगम्मि, सबओ परिवारिए। अमोहाहिं पडतीहि, गिर्हसि न रई लभे ॥ २१॥ उ. अ. १४ ॥ एवमभ्याहते लोके, समंतात्परिवारिते। अमोघासु पतंतीमु, कि धीर इव भापसे ॥७॥म.शा. अग13॥ (७) अलोलुयं मुहाजीविं, अणगार अकिंचणं । असंसत्थं गिहत्थेसु, तं वयं बूम माहणं ॥ २८ ॥ ३० अ० २.५ ॥ निराशिषमनारंभं, निर्नमस्कारमस्तुतिम् । अक्षीणं क्षीणकर्माणं, तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ ३४ ॥ म. शां. अ.. २६३ ।। (८) किण्हा णीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव या सुक्कलेसा य छट्ठा य, णामाइं तु जहकमं ॥ ३ ॥ उ० अ० ३४ ॥ षड्जीववर्णाः परमं प्रमाणं, कृष्णो धूम्रो नीलमथास्य मध्यम् । रक्तं पुनः सह्यतरे सुखं तु, हारिद्रवर्ण सुसुखं च शुक्रम् ॥ ३३ ॥ म.. शां० अ० २८० ॥ बौद्धिक १ रायसेणइय-सुस्तके समान दीघनिकायमें पायासी-मत्त मिलता है। माय थोड़ा सा अंतर इस प्रकार है । यथा-पएसी-पायासी, केसीकुमार-कमार काश्यप, चित्त प्रधान-खत्त । पृच्छाएँ और उनके उत्तर युक्ति प्रयुत्तिाओं सहित परायर में हैं । कंबोज देशके घोड़ोंकी बात जो 'रायपसेणइय' में है वह 'पायासी-मुक्त' में नहीं है। इसी प्रकार सूर्याभदेवकृत नाव्यरचनाएँ भी नहीं है । भावी वर्णनमें भी
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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