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________________ प० ५ पज्जत्तगाण ठिई] सुत्तागमे २४३ अंतोमुहत्तूणा कायव्वा ॥ २२७ ॥ पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालओ केवच्चिर होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेनं कालं जाव असंखेजा लोया। एवं आउ० तेउ० वाउक्काइयाणं वणस्सइकाइयाणं अणंतं कालं जाव आवलियाए असंखेजइभागो ॥ तसकाइए णं भंते !• जहन्नेणं अंतोमु० उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमब्भहियाई। अपजत्तगाणं छण्हवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पजत्तगाणं-'वाससहस्सा संखा पुढविदगाणिलतरूण पजत्ता । तेऊ राइंदिसंखा तससागरसयपुहुत्ताई ॥ १ ॥' पजत्तगाणवि सव्वेसिं एवं ॥ पुढविकाइयस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणप्फइकालो, एवं आउतेउवाउकाइयाणं वणस्सइकालो, तसकाइयाणवि, वणस्सइकाइयस्स पुढविकालो, एवं अपजत्तगाणवि वणस्सइकालो, वणस्सईणं पुढविकालो, पजत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो, पजत्तवणस्सईणं पुढविकालो ॥ २२८ ॥ अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा तसकाइया तेउक्काइया असंखेजगुणा पुढविकाइया विसेसाहिया आउकाइया विसेसाहिया वाउक्काइया विसेसाहिया वणस्सइकाइया अणंतगुणा एवं अपजत्तगावि पजत्तगावि ॥ एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं अपजत्तगाण य कयरे २ हिंतो अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपजत्तगा पुढविकाइया पजत्तगा संखेजगुणा, एएसि णं भंते ! आ० सव्वत्थोवा आउक्काइया अपज्जत्तगा पजत्तगा संखेजगुणा जाव वणस्सइकाइया० सव्वत्थोवा तसकाइया पजत्तगा तसकाइया अपजत्तगा असंखेजगुणा ॥ एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पजत्तगअपज्जत्तगाण य कयरे २ हिंतो अप्पा वा ४ ? गो० ! सव्वत्थोवा तसकाइया पजत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेजगुणा, तेउक्काइया अपज्जत्ता असंखेजगुणा, पुढविक्काइया आउक्काइया वाउकाइया अपजत्तगा विसेसाहिया, तेउक्काइया पज्जत्तगा संखेजगुणा, पुढविआउवाउपज्जत्तगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइया अपजत्तगा अणंतगुणा, सकाइया अपजत्तगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेजगुणा, सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया ॥ २२९ ॥ सुहुमस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं एवं जाव सुहुमणिओयस्स, एवं अपजत्तगाणवि पजत्तगाणवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ २३० ॥ सुहुमे णं भंते ! सुहुमेत्ति कालओ केत्रच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेजकालं जाव असंखेजा लोया, सव्वेसिं पुढविकालो जाव सुहुमणिओयस्स पुढविकालो, अपजत्तगाणं सव्वेसिं जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, एवं पज्जत्तगाणवि सव्वेसिं
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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