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________________ सुत्तागमे १९२ [जीवाजीवाभिगमे दलयंति, अप्पेगइया देवा हक्कारेंति, अप्पेगइया देवा वुक्कारेंति, अप्पेगइया देवा थक्कारेंति, अप्पे० पुकारेंति, अप्पेगइया देवा नामाइं सावेंति, अप्पेगइया देवा हक्कारेंति वुक्कारेंति थक्कारेंति पुकारेंति णामाइं सावेंति, अप्पेगइया देवा उप्पयंति, अप्पेगइया देवा णिवयंति, अप्पेगइया देवा परिवयंति, अप्पेगइया देवा उप्पयंति "णिवयंति परिवयंति, अप्पेगइया देवा जलेंति, अप्पेगइया देवा तवंति, अप्पेगइया देवा पतवंति, अप्पेगइया देवा जलंति तवंति पतवंति, अप्पेगइया देवा गजेति, अप्पेगइया देवा विजुयायंति, अप्पेगइया देवा वासंति, अप्पेगइया देवा गजति विजुयायंति वासंति, अप्पेगइया देवा देवसन्निवायं करेंति, अप्पेगइया देवा देवुक्कलियं करेंति, अप्पेगइया देवा देवकहकहं करेंति, अप्पेगइया देवा देवदुहदुहं करेंति, अप्पेगइया देवा देवसन्निवायं देवउक्कलियं देवकहकहं देवदुहदुहं करेंति, अप्पेगइया देवा देवुज्जोयं करेंति, अप्पेगइया देवा विजुयारं करेंति, अप्पेगइया देवा चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवा देवुजोयं विजुयारं चेलुक्खेवं करेंति, अप्पेगइया देवा उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्त० घंटाहत्थगया कलसहत्थगया जाव तेल्लसमुग्गयहत्थगया हटतुट्ठ जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया विजयाए रायहाणीए सवओ समंता आधाति परिधावेंति ॥ तए णं तं विजयं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवाराओ जाव सोलसआयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे विजयरायहाणीवत्थव्वा वाणमंतरा देवा य देवीओ य तेहिं वरकमलपइट्ठाणेहिं जाव अट्ठसएणं सोवणियाणं कलसाणं तं चेव जाव अट्ठसएणं भोमेजाणं कलसाणं सव्वो दगेहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वतुवरेहिं सव्वपुप्फेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विडीए जाव निग्घोसनाइयरवेणं महया २ इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति २ त्ता पत्तेयं २ सिरसावत्तं अंजलिं कटु एवं वयासी-जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! जय जय नंद भई ते अजियं जिणेहि जियं पालयाहि अजियं जिणेहि सत्तुपक्खं जियं पालेहि मित्तपक्खं जियमज्झे वसाहि तं देव ! निरुवसग्गं इंदो इव देवाणं चंदो इव ताराणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं भरहो इव मणुयाणं बहूणि पलिओवमाई बहूणि सागरोवमाणि बहूणि पलिओवमसागरोवमाणि चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं विजयस्स देवस्स विजयाए रायहाणीए अण्णेसिं च बहूणं विजयरायहाणिवत्थव्वाणं वाणमंतराणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं जाव आणाईसरसेणावचं कारेमाणे पालेमाणे विहाराहित्तिकड महया २ सद्देणं जयजयसदं पउंजंति ॥ १४१॥ तएणं से विजए देवे महया २ इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासणाओ अब्भुढेइ सीहासणाओ अब्भुढेत्ता अभिसेयसभाओ पुरथिमेणं दारेणं.पडिनिक्खमइ २ त्ता
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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