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________________ १७० सुत्तागमे [जीवाजीवाभिगमे देसे २ तहिं तहिं बहवे अक्खयसोत्थिया पण्णत्ता सव्वरयणामया अच्छा ॥ से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-पउमवरवेइया पउमवरवेइया ? गोयमा ! पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे २ तहिं तहिं वेइयासु वेड्याबाहासु वेइयासीसफलएसु वेइयापुडंतरेसु खंभेसु खंभबाहासु खंभसीसेसु खंभपुडंतरेसु सूईसु सूईमुहेसु सूईफलएसु सूईपुडंतरेसु पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु बहूई उप्पलाई पउमाई जाव सयसहस्सपत्ताई सव्वरयणामयाइं अच्छाई सण्हाइं लण्हाइं घट्ठाई मट्ठाई णीरयाइं णिम्मलाई निप्पंकाइं निकंकडच्छायाइं सप्पभाई समरीयाई सउज्जोयाइं पासाइयाई दरिसणिज्जाई अभिरूवाइं पडिरूवाइं महया २ वासिक्कच्छत्तसमाणाई पण्णत्ताई समणाउसो !, से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-पउमवरवेइया २ ॥ पउमवरवेइया ण भंते ! किं सासया असासया ? गोयमा! सिय सासया सिय असासया ॥ से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइसिय सासया सिय असासया ? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया वण्णपजवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपजवेहिं असासया, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-सिय सासया सिय असासया ॥ पउमवरवेइया णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा ! ण कयावि णासि ण कयावि णत्थि ण कयावि ण भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवा नियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा पउमवरवेइया ॥१२५॥ तीसे णं जगईए उप्पि बाहिं पउमवरवेइयाए एत्थ णं एगे महं वणसंडे पण्णत्ते देसूणाई दो जोयणाइं चकवालविक्खंभेणं जगईसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे जाव अणेगसगडरहजाणजुग्गपरिमोयणे सुरम्मे पासाईए सण्हे लण्हे घढे मढे नीरए निप्पंके निम्मले निकंकडच्छाए सप्पभे समिरीए सउज्जोए पासाईए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे ॥ तस्स णं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते से जहानामए-आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा सरतलेइ वा करयलेइ वा आयंसमंडलेइ वा चंदमंडलेइ वा सूरमंडलेइ वा उरब्भचम्मेइ वा उसभचम्मेइ वा वराहचम्मेइ वा सीहचम्मेइ वा वग्घचम्मेइ वा विगचम्मेइ वा दीवियचम्मेइ वा अणेगसंकुकीलगसहस्सवियए आवडपञ्चावडसेढीपसेढीसोत्थियसोवत्थियपूसमाणवद्धमाणमच्छंडगमगरंडगजारमारफुल्लावलिपउमपत्तसागरतरंगवासंतिलयपउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं समिरीएहिं सउज्जोएहिं नाणाविहपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोहिए तंजहा—किण्हेहिं जाव सुकिल्लेहिं ॥ तत्थ णं जे ते किण्हा तणा य मणी य तेसिणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए जीमूएइ वा अंजणेइ वा खंजणेइ वा कज्जलेइ वा मसीइ वा गुलियाइ वा गवलेइ वा गवलगुलियाइ वा भमरेइ वा भमरावलियाइ. वा भमरपत्तगयसारेइ वा जंबुफलेइ वा अद्दारिठेइ वा
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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