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________________ णमोऽत्यु णं समणस्स भगवओ णायपुत्तमहावीरस्स जैन धर्मके दस नियम (१) जगामे की व्य Substances मुख्य है, एक जीव Soul दूसरा अनी Ninsoul | अनीवके पुद्गल Matter, धर्म Medium ot Motion to Soul and Matter जीव और पुद्गलके चलने में सहकारी, अधर्म Metitum of Rest to Soul and Matter जीव और एलके ठहरनमें सहकारी, काल Time वर्तना लक्षणवान् और Er Syste:: स्थान देने वाला, इस प्रकार ५ भेद हैं । (२) भाव की अपेक्षा राय जीव समान और शुद्धस्वरूप हैं । परन्तु अनादि कालने मम्प पहलोंके संबंधसे वे अशुद्ध है। जिस प्रकार सोना खानसे मिट्टी मिला हुआ अशुद्ध निकलता है। (३) कर्ममलके कारण इस जीवको नाना योनियोंमें अनेक संकट भोगने पर है और उसीक मष्ट होने पर यह जीव अनन्तज्ञान-अनन्तदर्शनअननगम और अनन्नशक्ति आदि को जो कि इसकी निजी सम्पत्ति है और जिसे मुक्ति कहते हैं प्राप्त करता है। (.) निराकुलना लक्षणयुक्त मोक्षगुखकी प्राप्ति इस जीवके अपने निजी पुरु पाक अधिकार में है किसीके पास मांगनेसे नहीं मिलती। (..) पदायीक म्यापका यह सत्यवद्धान Right belief सत्यज्ञान Right Knowlesle और गाय आचरण Right Conduct ही यथार्थ मोक्षका साधन है। (६) वस्तुएं अनन्न धर्मात्मक है, स्याहाद ही उनके प्रत्येक धर्मका सत्यतासे प्रतिपादन करता है। ()म-आचरण निम्न-लिखित बातें गर्भित है, यथा (क) जीव मात्र पर दया करना, कभी किसीको शरीरसे कष्ट न देना, वचनम बुरा न कहना और मनसे बुरा न विचारना । (M) कोष-मान-माया-लोभ और मत्सर आदि कषायभावसे आत्माको मलिन न होने देना, उसे इनके प्रतिपक्षी गुणोंसे सदा पवित्र रखना । (ग) इंद्रियों और मनको वश करना एवं बहिरंग अर्थात् संसारभावमें लिस न होना। २ मुता
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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