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________________ (३३) आपकी ओरसे बुकपोष्ट द्वारा भेजा हुआ 'मुत्तागमे' का आठ-गा पुष्प प्राप्त हुआ । अत्र विराजित श्री मेवाड़भूपणजीके शिष्य कवि श्रीशांतिलालजी म. ठा. ४ की सेवामें प्रस्तुत किया। मनिश्रीने आपला अवलोकन करके ये उद्दार प्रगट किए है--"पुस्तकराज शहद एवं मंदर :, यह वीरवाणीका अमूल्य रत्न है। सम्पादक मुनिश्री शात्रज्ञानका गम्पादन करके गालाकी घड़ियोंको सफल कर रहे हैं। महाराज श्रीफूलचंद्र जी म्बागी दिग्गज विहान मुनिपुंगव द्वारा संपादित साहित्य जगतके कोने २ में प्रगरिन हो मी भेन्याक साथ चरणकमलमें शत शत बंदन हो।" मंत्री-व० स्था० श्रा० संघ रामा (मेवार) (३४) श्रीमान् शेठ रतनचंदजी भीलमदासजी बांठिया ! जयजिनेंद्र ! आपका भेजा हुआ 'सुत्तागमे' श्रीमेवाड़भूपण १००८ मंत्री श्रीमोतीलालजी म. सा० की सेवामें पेश किया, उनके पट्टशिष्य पं० शाखा मुनि श्री अंबालालजी म० ने अवलोकन कर यह सम्मति प्रदान की है कि-"यह आगमरत्नाकर महाग्रंथ स्वाध्याय-अनुरागियों तथा शास्त्रज्ञांके लिए अत्यन्त उपयोगी है। इस प्रकार जैनागमोंका सुंदर संकलन देखने का मुअवसर प्रथम बार ही पार हुआ है। सम्पादक मुनिश्री जैनधर्मोपदेष्टा महामान्य श्रीफलचंद्रजी म. की गरदन तव ही पूरी हो सकती है कि जब इस अनोखे ग्रंथका प्रचार सब देशनिगम हो, साथ ही प्रत्येक संग्रहालय और गृह पुस्तकालय में रखा जाय और इसका स्वाध्याय किया जाय । ग्रंथराजका संकलन आदरणीय तथा प्रशंसनीय है।" ___ मंत्री व० स्था० जैन श्रा०संघ देलवाड़ा (मेवाड़) (३५) श्रीप्यारेलाल जैन( अंबरनाथ )के द्वारा ११ अंगोंका एक मेट 'गुतागर्म' का मिला उसे श्रीमुनि मांगीलालजी म. ने अथसे इति तक अवलोकन किया, वहा सन्तोष हुआ और उन्होंने खूब सराहना करते हुए यह सम्मति पेश की"सुत्तागमे" का संकलन अनोखे ढंगसे किया है, इसके गूढ रहस्यको शास्त्रश ही समझ सकते हैं अज्ञ या दुर्विदग्ध नहीं । आपके अथक परिश्रम ही यह कार्य पूर्ण हो पाया है अस्तु बधाई ! इसमें शुद्धिपर अच्छे प्रकारसे ध्यान रक्या गया है। वर्तमान ढंगसे यह आयोजन आदरणीय है, इसी ढंगक सौत्रिक प्रकाशनकी आज आवश्यकता है । मैं चाहता हूं कि आपश्री अन्य सूत्रोंका भी इसी प्रकार पुनद्धार करें ताकि ये शुद्ध प्रतियां जगतीतलमें श्रामक तमस्तोमको दूर कर सही मार्गको प्रकाशित कर सकें ।श्रीमुनि-मांगीलालजी म०चींचपोकली-मुंबई १२
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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