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________________ १२ वाला एहवा हे पुष्पचंद्रजित् स्वामिन्! आपश्री वीतरागप्रणीत जिनागमोनी भाषाना अने तेमां दर्शावेला भावोना घणाज निष्णात होई आपश्रीए जिनागमोद्धारनुं जे मंगल कार्य हाथ धर्यु छे ते मंगलकार्य आपीना हाथश्री निर्विधपणे चालु रहो, अने आपना सत्पुरुषार्थथी जैम बने ते वेळासर आपश्री धारेल शुभकार्य पूर्ण थाओ एहवी मारी आपना प्रत्ये हार्दिक शुभ भावना है. समागमेः-सूत्रागमोना मूलपाठ रूपे ११ अगियार अंगो प्रगट या है तेनुं काम धणं सुंदर, युं छे. कारण के आप ते भाषाना निष्णात होई आपनाज हाथ थी पा लखाई प्रेसकॉपी तैयार थयेल, अने ते पवित्र आगमी मुंबई निर्णयसागर प्रेम छपाया, जेथी सुवर्ण अने सुगंध बलेनो सुमेछाप भयो है, ते जो हृदयमा प्रमोद भाव उद्भवे छे. वे पछीनुं आगमोद्वार अंगेनुं दरेक कार्य तेज सुंदर बनो नम हुं इच्छं छं. लिखी – लींबड़ी संप्रदायना मंगळस्वरूप स्वर्गस्थ गुम्नेय मंगलजी स्वामीना शिष्य मुनि शामजी. ( २८ ) आर्यमुनिलालजी म. झरिया २८-८-५४ 'सुत्तागमे तत्थ णं एक्कारसंगसंजुओ पढमो अंसो' देखकर प्रसन्नता हुई। गारी प्रति शुद्ध है । इस तरह उपांग, छेद, मूल, आवश्यक जल्दी बाहर पड़ेंगे। स्वाध्यायवालों के लिए 'सुत्तागमे' बहुत ही उपयोगी है 1 आर्य जैन मुनि श्रीहीरालालजी म० (२९) आपश्री तरफथी संशोधित 'मुत्तागमे' ( मुसो ) प्रगट थया है. जेनी केटीक नकलो अमने आवेली, जे जोता संतोष थयो. आम शास्त्रीय साहित्य अने अन्य धार्मिक साहित्य आपश्री तरफधी संशोधित थई प्रचार पाने में जेथी समाजने अलभ्य लाभ मळे छे. समाज आपश्रीजीनो ऋणी छे. मुनि रनचंदना वंदन कच्छ - मांडवी (३०) भवया संपादिओ इक्कारसंगसंजुतो पढमो अंसो सुत्तागमस्त सुचारुवेण मुद्दिओ तइया भोमवासरे संपत्तो, सो साभारसीकओ मए । दिद्विप णीओ सो महागंथो, तम्हि संखित्तपागयवागरणविसओ वि सुठु उवदंसिओत्थि । तस्य संगोहणं समीचीणं कयमत्थि भवया । एसो गंथो सज्झायकरणे अज्झयणे अजमावणे वा बहूवओगी अत्थि साहगाणमिति । अस्स पत्ताणि सुहमाणि संति, जइ चेव धूलगाणि पत्ताणि हविज्जा तो दीहाउगो हविज्ज एसो महागंथो । रयणचंदो मुणी-मंडणउरं (मांडवी कच्छ) (३१) मुनि श्री फूलचंद्रजी महाराज ! आपकी ओरसे 'सुत्तागमे तस्थ णं एका
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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