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________________ प्रकाशकीय आजके इस वैज्ञानिक युगमें जहां मनुष्यने विज्ञानके द्वारा नई २ व्यवहारोपयोगी वस्तुओंका आविष्कार किया है वहां महान से महान संहारक उमजनम में शस्त्रोंका भी । यह सब किसलिए? मेरी सत्ता समस्त संगारपर छा जाए, ही सवका प्रभु हो जाऊं। एक ओर तो शस्त्रोंकी होड़में एक देश गरे बने आगे निकल जाना चाहता है तब दूसरी ओर आधुनिक जनता का अधिक भाग यसको न चाहकर शांतिकी झंखना करता है। परन्तु शांति शत्रों के चलते किए गए युद्धोंसे नहीं मिल सकती । शांतिका वारा तो आध्यात्मिकता है भौनिकामना, और शातपुत्र महावीर भगवान्के द्वारा प्रतिपादित आगम आयामिकतामे भरपूर हैं, उस आध्यात्मिकताके प्रसारके लिए ज्ञान:पुत्र महावीर जनमंधानयायी उग्रविहारी जैन मुनि १०८ श्रीफूलचंद्रजी महाराजकी विशुद्ध प्रेरणाग गांगनिने आगमोंके प्रकाशनका काय अपने हाथमें लिया है जिसका प्रथम फल 11 अंगमगों से युक्त 'सुत्तागम' के प्रथम भाग के रूपमें आपके सन्मुख आ चुका है। इसको 'सुत्तागम' के रूपमें एक ही जिल्दमें देने की उत्कट इन्छा होने प भी ग्रंथगनका देह-सूत्र बढ़ जानेसे ११ अंगोंका प्रथम अंश अलग बनाना पड़ा और मारा अंश आपके समक्ष है जिसमें १२ उपांग, ४ छेद, ४ मूल और आवश्यक कार २१ सूत्रोंका समावेश है। परिशिष्टमें कल्पसूत्र सामायिक तथा अतिक्रमण मन भी हैं। इसका सारा श्रेय जैनधर्मोपदेष्टा उग्रविहारी बंग-मि-उत्तरप्रदेश-विहार-मनालहिमाचल-महाराष्ट्र-गुजरात-मध्यभारत-मरुस्थलादि-देश-पावनकता परम पूज्य १.८ श्रीफूलचंद्रजी महाराज को है जिन्होंने अपना अमूल्य गमय देकर ग महान. ग्रंथ का संपादन किया है। आपकी विद्वत्ता, वक्तृत्व और प्रभाव गर्वविदित है। आपने 'नवपदार्थज्ञानसार' 'परदेशी की प्यारी बातें' 'गरकुसुमाकर' गायकुसुमकोरक' 'सम्यक्त्वछप्पनी' 'आगम शब्द प्रवेशिका' आदि कई ग्रंथों की रचना की है। 'वीरस्तुति' की विस्तृत टीका, शांतिप्रकाशसारमंजरी, आदि मंस्कृन रचनाएँ भी की हैं। आपके द्वारा लिखा गया मेरी 'अजमेरमुनि-सम्मान यात्रा' के रूपमें अजमेर साधु-सम्मेलन का इतिहास इतिहासविशेषज्ञों एवं अन्वेषकों के लिए अत्यंत उपयोगी है । आपने कई एक ग्रंथोंका सुन्दर संपादन भी किया है। इस ‘सुत्तागम' का संपादन करके आपने जो उपकार किया है, वह वर्णनातीत है। इसके अतिरिक्त इस प्रकाशनमें जिन २ महानुभावाने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपमें किसी भी प्रकारकी जिनवाणीकी सेवा की है उनका हम हार्दिक
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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