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________________ १०५८ सुत्तागमे [उत्तरज्झयणसुत्तं दिसा विचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया ॥ २०९ ॥ वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । कप्पोवगा य बोधव्वा, कप्पाईया तहेव य ॥ २१० ॥ कप्पोवगा बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा । सणंकुमारमाहिंदा, भलोगा य लंतगा ॥ २११॥ महासुक्का सहस्सारा, आणया पाणया तहा। आरणा अञ्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ॥ २१२ ॥ कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । गेविजाणुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं ॥ २१३ ॥ हेछिमाहेट्ठिमा चेव, हेहिमामज्झिमा तहा । हेट्ठिमाउवरिमा चेव, मज्झिमाहेट्ठिमा तहा ॥ २१४ ॥ मज्झिमामज्झिमा चेव, मज्झिमाउवरिमा तहा। उवरिमाहेट्ठिमा चेव, उवरिमामज्झिमा तहा ॥ २१५ ॥ उवरिमाउवरिमा चेव, इय गेविजगा सुरा । विजया वेजयंता य, जयंता अपराजिया ॥ २१६ ॥ सव्वत्थसिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इय वेमाणिया एए, ऽणेगहा एवमायओ ॥ २१७ ॥ लोगस्स एगदेसंमि, ते सव्वे वि वियाहिया। इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥ २१८ ॥ संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसिया वि य ॥ २१९ ॥ साहियं सागरं एकं, उक्कोसे(णं)ण ठिई भवे । भोमेजाणं जहन्नणं, दसवाससहस्सिया ॥ २२० ॥ [पलिओवम दो ऊणा, उक्कोसेण वियाहिया । असु(रे)रिंदवजेताण, जहन्ना दससहस्सगा ॥] पलिओवममेगं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । वंतराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २२१ ॥ पलिओवममेगं तु, वासलक्खेण साहियं । पलिओवमट्ठभागो, जोइसेसु जहन्निया ॥ २२२ ॥ दो चेव सागराई, उक्कोसेण वियाहिया । सोहम्मम्मि जहन्नेणं, एगं च पलिओवमं ॥ २२३ ॥सागरा साहिया दुन्नि, उन्कोसेण वियाहिया । ईसाणम्मि जहन्नेणं, साहियं पलिओवमं ॥ २२४ ॥ सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेण ठिई भवे । सणंकुमारे जहन्नेणं, दुन्नि ऊ सागरोवमा ॥ २२५ ॥ साहिया सागरा सत्त, उक्कोसेण ठिई भवे । माहिदम्मि जहन्नेणं, साहिया दुन्नि सागरा ॥ २२६ ॥ दस चेव सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । बंभलोए जहन्नेणं, सत्त ऊ सागरोवमा ॥ २२७ ॥ चउद्दस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । लंतगम्मि जहन्नेणं, दस उ सागरोवमा ॥ २२८ ॥ सत्तरस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहन्नेणं, चोद्दस सागरोवमा ॥ २२९ ॥ अट्ठारस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥ २३० ॥ सागरा अउणवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नेणं, अट्ठारस सागरोवमा ॥ २३१ ॥ वीसं तु सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्नेणं, सागरा अउणवीसई ॥ २३२ ॥ सागरा इक्कवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आरणम्मि जह
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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