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________________ सुत्तागमे [ उत्तरज्झयणसुतं दुक्खं ॥ ५८ ॥ एमेव गंधमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ५९ ॥ गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥ (४) जिब्भाए रसं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु। तं दोसउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ६१ ॥ रसस्स जिन्भं गहणं वयंति, जिब्भाए रसं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउ अमणुन्नमाहु ॥ ६२ ॥ रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे वडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिस भोगगिद्धे ॥ ६३ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दंतदोसेण सएण जंतू न किंचि रसं अवरज्झई से ॥ ६४ ॥ एतरते रुइरंसि रसे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ६५ ॥ रसाणुगासागए य जीवे, चराचरे हिंसइणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरु किलिट्ठे ॥ ६६ ॥ रसाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । १०४२ विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ ६७ ॥ रसे अतित्ते य परिग्गहंमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुद्धिं । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ६८ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रसे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वढ्ढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चाई से ॥ ६९ ॥ मोसस्स. पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ७० ॥ रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो मुहं होज़ कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ७१ ॥ एमेव रसम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ७२ ॥ रसे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ७३ ॥ (५) कायस्स फासं गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुन्नमाहु | तं दोसउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ७४ ॥ फासस्स कायं गहणं वयंति, कायस्स फासं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ७५ ॥ फासेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे सीयजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे विवन्ने ॥ ७६ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि फासं अवरज्झई से ॥ ७७ ॥ एगंतरत्ते रुइरंसि फासे, अतालिसे से
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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