SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1068
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अ० १२ ह. भि० बं० जण्णसालागमणं] सुत्तागमे ९९३ कलहडमरवजिए, बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिसंलीणे, सुविणीए त्ति बुच्चई ॥ १३ ॥ वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियंवाई, से सिक्खं लद्भुमरिहई ॥ १४ ॥ जहा संखंमि पयं, निहियं दुहओ वि विरायइ । एवं बहुस्सुए भिक्खू , धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥ १५ ॥ जहा से कंबोयाणं, आइण्णे कंथए सिया । आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १६ ॥ जहाइण्णसमारूढे, सूरे दढपरक्कमे । उभओ नंदिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १७ ॥ जहा करेणुपरिकिण्णे, कुंजरे सढिहायणे । बलवंते अप्पडिहए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १८ ॥ जहा से तिक्खसिंगे, जायखंधे विरायई । वसहे जूहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १९ ॥ जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २०॥ जहा से वासुदेवे, संखचक्कगयाघरे । अप्पडिहयवले जोहे, एवं हवइ बहुस्नुए ॥ २१ ॥ जहा से चाउरते, चक्कवट्टी महिडिए । चोद्दसरयणाहिवई, एवं हवड़ बहुस्सुए ॥ २२ ॥ जहा से सहस्सक्खे, वजपाणी पुरंदरे । सके देवाहिबई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २३ ॥ जहा से तिमिरविद्धंसे, उचिटुंते दिवायरे । जलंते इव तेएण, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २४ ॥ जहा से उडुवई चंदे, नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुण्णो पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २५ ॥ जहा से सामाझ्याणं, कोटागारे सुरक्खिए । नाणाधनपद्धिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥ जहा सा दुमाण पवरा, जंबू नाम सुदंसणा । अणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सए ॥ २५ ॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा। सीया नीलवंतपवहा, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २८ ॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मंदरे गिरी । नाणोसहिपजलिए, एवं हवद बहुस्मए ॥ २९ ॥ जहा से सयंभुरमणे, उदही अक्खओदए। नाणारयणपडिपुण्णे, एवं ह्वइ बहुस्सए ॥ ३० ॥ समुद्दगंभीरसमा दुरासया, अचकिया केणइ दुप्पहंसया । नुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो, खवितु कम्मं गइमुत्तमं गया ॥ ३१ ॥ तम्हा नयमहिडिजा, उत्तमट्ठगवेसए। जेणापाणं परं चंब, सिद्धि संपाउणेजालि ॥ ३२ ॥ त्ति-ब्रेमि ॥ इति बहुस्सुयपुजं णामं एगारसममज्झयणं समत्तं ॥११॥ अह हरिएसिज्जं णाम दुवालसममज्झयणं सोवागकुलसंभूओ. गुणुत्तरधरो मुणी । हरिणगबलो नाम, आनि निम्न जि. दिओ ॥ १ ॥ इरिएमणभागाए, उगारसमिईन य । जओ आयानिवे, मंजी मुसमाहिओ ॥ २ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुती जिदिओ । मिक्सट्टा भ
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy