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________________ सुत्तागमे [ दसवेयालियसुत्तं सया चए निच्चहियट्ठियप्पा । छिंदित्तु जाईमरणस्स बंधणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमं गईं ॥ २१ ॥ ति-बेमि ॥ इति सभिक्खू णामं दसममज्झयणं समत्तं ॥ १० ॥ ९७४ अह रइवक्का णामा पढमा चूलिया , ८, इह खलु भो ! पव्वणं उप्पन्न दुक्खेणं संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं ओहाणुप्पेहिणा अणोहाइएणं चेव हयर स्सिगयंकुसपोयपडागाभूयाई इमाई अट्ठारस ठाणाई सम्मं संपडिलेहियव्वाइं भवंति, तंजहा - हं भो ! दुस्समाए दुप्पजीवी १, लहुस्सगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा २, भुजो य साइबहुला मणुस्सा ३, इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाई भविस्सइ ४, ओमजणपुरक्कारे' वंतस्स य पडिआयणं ६, अहरगइ-वासोवसंपया ७, दुल्ल खलु भो ! गिहीणं धम्मे गिहिवासमझे वसंताणं आयंके से वहाय होइ ९, संकप्पे से वहाय होइ १०, सोवक्केसे गिहिवासे निरुवक्के से परियाए ११, बंधे गिहिवासे मुक्खे परियाए १२, सावज्जे गिहिवासे अणवज्जे परियाए १३, बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा १४, पत्तेयं पुण्णपावं १५, अणि खलु भो ! मणुयाण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले १६, बहुं च खलु भो ! पावं कम्मं पगडं १७, पावाणं च खलु भो ! कडाणं कम्माणं पुव्विं दुश्चिण्णाणं दुपडिकंताणं वेत्ता मुक्खो नत्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसइत्ता १८ अट्ठारसमं पयं भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो – जया य चयई धम्मं, अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए बाले, आयइं नावबुज्झई ॥ ॥ जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्मपरिब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पई ॥ २ ॥ जया य वंदिमो होइ, पच्छा होइ अवदिमो । देवया व चुया ठाणा, स पच्छा परितप्पई ॥ ३ ॥ जया य पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो । राया व रज्जपब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पई ॥ ४ ॥ जया य माणिमो होइ, पच्छा होइ अमाणिमो । सेट्टिव्व कब्वडे छूढो, स पच्छा परितप्पई ॥ ५ ॥ जया य थेरओ होइ, समइकंतजुव्वणो । मच्छुव्व गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पई ॥ ६ ॥ जया य कुकुडंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मई । हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पई ॥ ॥ पुतदारपरिकिण्णो, मोहसंताणसंतओ | पंकोसन्नो जहा नागो, स पच्छा परितप्पई ॥ ८ ॥ " अज्ज याहं गणी तो, भाविप्पा बहुस्सु । जइ हं रमंतो परियाए, सामण्णे जिणदेसिए" ॥ ९ ॥ देवलोगसमाणो य, परियाओ महेसिणं । रयाणं अरयाणं च महानरयसारिसो॥ १०॥ अमरोवमं जाणिय सुक्खमुत्तमं रयाण परियाए तहारयाणं । निरओवमं जाणिय د
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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