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________________ ९२४ सुत्तागमे [भगवई दिया दुविहा प०, तं०-अत्थेगइया समाउया समोववन्नगा अत्थेगइया समाउया विसमोववन्नगा, तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं तुलट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, से तेणटेणं जाव वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति। सेवं भंते ! २ त्ति ॥ ८५१॥ ३४-१-२॥ कइविहा णं भंते ! परंपरोववनगा एगि. दिया प० ? गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया प०, तं०-पुढविक्काइया भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति । परंपरोववन्नगअपजत्तसुहुमपुडविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए २ त्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए एवं एएणं अभिलावेगं जहेव पढमो उद्देसओ जाप लोगचरिमंतोत्ति । कहिन्नं भंते ! परंपरोववन्नगपजत्तगवायरपुढविकाइयाणं ठाणा प०१ गोयमा ! सट्टाणेणं अट्ठसु पुढवीसु एवं एएणं अभिलावेण जहा पढमे उद्देसए जाव तुल्लट्ठिई यत्ति । सेवं भंते ! २ त्ति ॥ ३४-१-३॥ एवं सेसावि अट्ठ उद्देसगा जाव अचरिमोत्ति, नवरं अणंतरा अणंतरसरिसा परंपरा परंपरसरिसा चरिमा य अचरिमा य एवं चेव, एवं एए एकारस उद्देसगा ॥ ८५२ ॥ ३४-१-११॥ पढमं एगिदियसे ढिसयं समत्तं॥ कइविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा एगिदिया प०? गोयमा । पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया प० भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति । कण्हलेस्सअपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छि. मिल्ले एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसओ जाव लोगच रिमंतेत्ति सव्वत्थ कण्हले. स्सेसु चेव उववाएयव्यो । कहिन्नं भंते ! कण्हलेस्सअपजत्तगवायरपुडविकाइयागं ठाणा प०? गोयमा ! एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहि(य)उद्देसओ जाव तुलहिईयत्ति । सेवं भंते ! २ ति ॥ एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढम सेढिसय तहेव एक्कारस उद्दे. सगा भाणियव्वा ॥३४-२-११॥ विइयं एगिदियसे ढिसयं समत्तं ॥ एवं नीललेस्सेहिवि तइयं सयं । काउलेस्सेहिवि सयं, एवं चेव चउत्थं सय । भविसिद्धियएगिदिएहिवि सयं पंचमं समत्तं ॥ कइविहा णं भंते । कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिदिया प०? एवं जहेव ओहियउद्देसओ, कइविहा णं भंते ! अणंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया प० जहेव अगंतरोववन्नगउद्देसओ ओहिओ तहेव ।। कइविहा णं भंते ! परंपरोववन्नगकरलेस्स भवसिद्धिया एगिदिया प०? गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगकरहलेस्सभवसिद्धियएगिदिया प० ओहिओ भेदो चउकओ जाव वणस्सइकाइयत्ति । , परंपरोक्वन्नगकण्हलेस्सभवसिद्धियअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्प
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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