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________________ (नं. ९) जैन जगतके सुप्रसिद्ध पर्यटक एवं जैन धर्मोपदेष्टा श्री पुप्फभिक्खू द्वारा संपादित सूत्रकृतांगसूत्रका मूलसंस्करण. देखकर महती प्रसन्नता हुई। मूलपाठका शुद्धरूप उत्तम संपादन और नयनाभिराम प्रकाशन, वस्तुतः आजके युगमें सर्वतोभावेन आदरणीय है। स्वाध्याय प्रेमी विद्वानोंके लिए यह प्रयत्न बहुत ही स्तुत्य प्रयत्न है । इस दिशामे श्रीपुप्फभिक्खूका यह सत्प्रयास चिरस्मरणीय रहेगा । मूल आगमों के प्रकाशनकी उनकी योजनाकी मै हृदयसे सफलता चाहता हूं । सर्वसाधारण जनताके लिए बड़े काम की वस्तु है । शंकरलाल वाटिका १६ मई १९५१ मुनि 'अमर' व्यावर (नोट) आपका पूरा नाम जगद्विख्यात कविरत्न, उपाध्याय, मुनि श्री १०८ श्री अमरचंद्रजी महाराज है। (नं. १०) श्रीमान श्रद्धेय मुनिश्री हजारीमलजी महाराज तथा पंडित मुनिश्री मिश्रीमलजी (मधुकर) महाराज की सम्मति ___ "आचारांग" की तरह 'सूत्रकृतांग' का प्रकाशन भी बहुत सुंदर हुआ है । स्वाध्याय रसिकोके लिए यह प्रकाशन बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। जैनधर्मोपदेष्टा उग्रविहारी पंडित मुनिश्री फूलचद (पुप्फभिक्खू) का आगससाहित्यकी दिशामें यह सत्प्रयत्न हृदयसे अभिनंदनीय है। आशा है जैनसमाज मुनिश्री की इस विराट् आगमसंपादन योजनाका उदार हृदयसे स्वागत करेगा। हम मुनिश्रीके इस स्तुत्य प्रयासकी हार्दिक सफलता चाहते हैं। प्रेपक श्रीधूलचंदजी महता व्यावर (नं. ११) "मैंने पंडितरत्न, मधुर व्याख्याता उग्रविहारी अनथक प्रचारक जैन धर्मोपदेष्टा मुनिश्रीफूलचंद्रजी महाराज द्वारा संपादित सूत्रकृतांग सूत्र नुत्तागमरूप पुस्तकाकार देखा । संपादकने इसमें पाठोंकी शुद्धि, उपकरणमे हलका तथा मुद्रणकलाकी दृष्टि से सुंदर व्यवस्थित छपाई आदिका विशेष ध्यान रक्खा
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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