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________________ चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ, केवलं वोहिं बुज्झिहिइ, तत्थवि णं अविराहियसामन्ने कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे देवत्ताए उववजिहिइ, से णं तओ० चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ० तत्थवि णं अविराहियसामन्ने कालमासे कालं किच्चा सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववजिहिइ, से णं तओहिंतो एवं जहा सणकुमारे तहा वंभलोए महासुक्ने आणए आरणे, से णं तओ जाव अविराहियसामन्ने कालमासे कालं किच्चा सव्वट्ठसिद्ध महाविमाणे देवत्ताए उववजिहिइ, से णं तओहितो अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाइं इमाई कुलाई भवंति-अड्डाइं जाव अपरिभूयाई, तहप्पगारेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ, एवं जहा उववाइए दढ़प्पइन्नवनव्वया सच्चेव वत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्वा जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिइ, तए णं से दढप्पइन्ने केवली अप्पणो तीतद्धं आभोएहिइ अप्प० २ ता समणे निग्गंथे सद्दावेहिइ सम० २ त्ता एवं वदिहिइ-एवं खलु अहं अज्जो ! इओ चिरातीयाए अद्धाए गोसाले नाम मंखलिपुत्ते होत्था समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए, तम्मूलगं च णं अहं अजो । अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टिए, तं मा णं अजो ! तुम्भंपि केइ भवउ आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरियउवज्झायाणं अयसकारए अवनकारए अकित्तिकारए, मा णं सेऽवि एवं चेव अणादीयं अणवदग्गं जाव संसारकंतारं अणुपरियट्टिहिइ जहा णं अहं । तए णं ते समगा निग्गंथा दढप्पइन्नस्स केवलिस्स अंतियं एयमहें सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभयउबिग्गा दढप्पइन्नं केवलिं वंदिहिंति नमंसिहिंति वं० २ त्ता तस्स ठाणस्स आलोइएहिति निंदिहिंति जाव पडिवजिहिंति, तए णं से दढप्पइन्ने केवली वहूइं वासाइं केवलपरियागं पाउणिहिइ वहूइं० २ त्ता अप्पणो आउसेसं जाणित्ता भत्तं पञ्चक्खाहिइ, एवं जहा उववाईए जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ । सेवं भंते ! २ त्ति जाव विहरइ ॥ ५५९ ॥ तेयनिसग्गो समत्तो (अद्धणं) ॥ समत्तं च पन्नरसमं सयं एकसरयं ॥ अहिगरणि जरा कम्मे जावइयं गंगदत्त सुमिणे य । उवओग लोग बलि ओहि दीव उदही दिसा थणिया ॥१॥ चउद्दस० सोलसमे ॥ तेणं कालेणं .तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! अहिगरणिंसि वाउयाए वक्कमइ ? हता अस्थि, से भंते ! किं पुढे उद्दाइ,अपुढे उद्दाइ ? गोयमा ! पुढे उद्दाइ नो अपुढे उद्दाइ, से भंते ! किससरीरी निक्खमइ असरीरी निक्खमइ ?,एवं जहा खंदए जाव से तेणटेणं-जाव नो असरीरी निक्खमइ ॥५६०॥ इंगालकारियाए णं भंते ! अगणिकाए केवइयं कालं संचिठ्ठइ ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्नोसेणं तिन्नि राइंदियाई,
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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