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________________ चउत्थमज्झयणं उ०१] सुत्तागमे चरे । सव्वं हासं परिच्चन्ज, आलीणगुत्तो परिव्वए ॥ २०१॥ पुरिसा, तुममेव तुम मित्तं, किं वहिया मित्तमिच्छसि ॥ २०२ ॥ जं जाणिज्जा उच्चालइयं तं जाणिज्जा दूरालइयं, जं जाणिज्जा दूरालइयं तं जाणेज्जा उच्चालइयं ॥ २०३ ॥ पुरिसा! अत्ताणमेवं अभिणिगिज्झ एवं दुक्खा पमुच्चसि ॥ २०४ ॥ पुरिसा! सचमेव समभिजाणाहि, सच्चस्साणाए से उवठिए मेहावी मारं तरति, सहिओ धम्ममायाय सेयं समणुपस्सति ॥ २०५॥ दुहओ, जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए, जंसि एगे पमायंति ॥ २०६ ॥ सहिओ दुक्खमत्ताए पुठ्ठो णो झंझाए; पासिमं दविए लोए लोयालोयपवंचाओ मुच्चइत्ति बेमि ॥ २०७ ॥ तइओद्देसो समत्तो॥ से वंता कोहं च, मागं च, मायं च, लोभं च, एयं पासगस्स दंसणं, उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स आयाणं सगडभि ॥ २०८ ॥ जे एग जाणइ से लव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ॥ २०९ ॥ सव्वतो पमत्तस्स भयं, सब्बतो अप्पमत्तस्स णत्थि भयं ॥ २१० ॥ जे एगं णामे से वहुं णामे, जे वहुं णामे से एगं णामे ॥ २११॥ दुक्खं लोयस्स जाणित्ता, वंता लोगस्स संजोगं, जंति वीरा महाजाणं, परेण परं जंति, नावखंति जीवियं ॥२१२॥ एग विगिचमाणे पुढो विगिचइ पुढो विगिचमाणे एगं विगिचइ ॥ २१३ ॥ सड्डी आणाए मेहावी ॥२१४ ॥ लोगं च आणाए अभिसमेच्च अकुओभयं ॥ २१५ ॥ अत्थि सत्थं परेण परं, णत्थि असत्यं परेण परं ॥ २१६ ॥ जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायादंसी, जे मायादंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पिज्जदंसी, जे पिज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गन्भदंसी, जे गम्भदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से णरयदंसी, जे णरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी ॥२१७ ॥ से मेहावी अभिनिवट्टिजा, कोहं च-माणं च-सायं च-लोहं च-पिजं च-दोसं च-मोहं च-गभं च-जम्म च-मरणं च-णरगं च-तिरियं च-दुक्खं च-एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स ॥ २१८ ॥ आयाणं णिसिद्धा सगडभि ॥ २१९ ॥ किमत्यि ओवाहि पासगस्स ? ण विजइ ? णत्थित्ति, बेमि ॥ २२० ॥ चउत्थोद्देसो समत्तो॥ सीयोसणीयं तइयज्झयणं समत्तं से बेमि-जेय अईया, जेय पद्धप्पन्ना, जेय आगमिस्सा-अरहंता भगवंतो ते सव्वे, एव-माइक्खंति-एवं भासंति-एवं पण्णविंति, एवं परूविंति-सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता, ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघितव्चा, ण
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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