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________________ सुत्तागमे [भगवई ५२२ छउमत्थे णं भंते ! मणूसे तीयमणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहा भाणियव्वं जाव अलमत्थु० ॥२९२॥ से णूणं भंते ! हत्थिस्त य कुंथुस्स य समे चेव जीवे ?, हंता गोयमा ! हथिस्स य कुंथुस्स य एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव खुड्डियं वा महालियं वा से तेणटेणं गोयमा! जाव समे चेव जीवे ॥ २९३ ॥ नेरइयाणं भंते ! पावे कम्मे जे य कडे जे य कजइ जे य कजिस्सइ सव्वे से दुक्खे जे निजिन्ने से सुहे ?, हंता गोयमा ! नेरइयाणं पावे कम्मे जाव सुहे, एवं जाव वेमाणियाणं ॥ २९४ ॥ कइ णं भंते ! सन्नाओ पन्नत्ताओ?, गोयमा! दस सन्नाओ पन्नत्ताओ, तंजहा-आहारसन्ना १ भयसन्ना २ मेहुणसन्ना ३ परिग्गहसन्ना ४ कोहसन्ना ५ माणसन्ना ६ मायासन्ना ७ लोभसन्ना ८ लोगसन्ना ९ ओहसन्ना १०, एवं जाव वेमाणियाणं । नेरझ्या दसविहं वेयणिज्जं पञ्चणुभवमाणा विहरंति, तंजहा-सीयं उसिणं खुहं पिवासं कंडं परज्झं जरं दाहं भयं सोगं ॥२९५॥ से नूणं भंते ! हथिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपञ्चक्खाणकिरिया कजइ ?, हंता गोयमा ! हत्यिस्स य कुंथुस्स य जाव कजइ । से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव कन्जइ ?, गोयमा ! अविरइं पडुच्च, से तेणटेणं जाव कजइ ॥२९६ ॥ आहाकम्मण्णं भंते ! भुंजमाणे किं बंधइ ? किं पकरेइ ? किं चिणाइ ? किं उवचिणाइ ? एवं जहा पढमे सए नवमे उद्देसए तहा भाणियव्वं जाव सासए पंडिए पंडियत्तं असासयं, सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥२९७॥ सत्तमसयस्स अट्टमो उद्देसो॥ असंवुडे णं भंते ! अणगारे वाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवन्नं एगरूवं विउवित्तए ?, णो तिणढे समढे। असंवुडे णं भंते ! अणगारे वाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवन्नं एगरूवं जाव हंता! पभू । से भंते ! कि इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ ?, गोयमा ! इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ नो तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ नो अन्नत्थगए पोग्गले जाव विउव्वइ, एवं एगवन्नं अणेगरूवं चउभंगो जहा छट्ठसए नवमे उद्देसए तहा इहावि भाणियव्वं, नवरं अणगारे इहगए चेव पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ, सेसं तं चेव जाव लुक्खपोग्गलं निद्धपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए ?, हंता। पभू, से भंते । किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता जाव नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ ॥ २९८ ॥ णायमेयं अरहया नुयमेयं अरहया विनायमेयं अरहया महासिलाकंटए संगामे ॥ महासिलाकंटए गं भंते ! संगामे वट्टमाणे के जइत्था के पराजइत्था ?, गोयमा ! वजी विदेहपुत्ते जइत्या, नवमलई नवलेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो पराजइत्था ॥
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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