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________________ सुत्तागमे [ भगवई ४६२ जाव रायगिहे नगरे समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रुवार जाणइ पामइ ?, हंता । जाणइ पासइ, तं चेव जाव तस्स णं एवं होइ-एवं सल अहं बाणारसीए नगए समोहए २ रायगिहे नगरे स्वाइं जाणामि पासामि, से से दंसणे विवधासे भवति, से तेणटेणं जाव अन्नहाभावं जागइ पासइ ॥ अणगारे गं भंते ! भात्रियप्पा माई मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउब्बियलद्धीए विभंगणाणलद्धीए वाणारनि नगरि रामनिहं च नगर अंतरा एगं महं जणवयवरगं समोहए २ वागारसिं नगरि रायगिह च नगरं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं जाणति पासति ? हंता ! जाणइ पाराइ, से मंत! किं तहाभावं जाणइ पासइ अन्नहाभावं जाणइ पा०?, गोयमा जो नहाभावं जागति पासइ अन्नहाभावं जाणइ पासइ, से केगट्टेणं जाव पासइ ?, गोयमा : नस्स बल एवं भवति एस खलु वाणारसी [ए] नगरी एस खलु रायगिहे नगरे एस खल अंतरा एगे महं जगवयवग्गे नो खलु एस महं वीरियलद्वी वेउबियलद्धी विभंगनागली इड्ढी जुई जसे वले वीरिए पुरिसकारपरक्कमे लढे पत्ते अभिसमण्णागए, से से ईसणे. विवच्चासे भवति, से तेणद्वेणं जाव पासति । अणगारे णं भंते ! भावियप्पा अमाई सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउबियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहे नगरे नमोहए २ वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणइ पासइ ?, हता!, से भंते ! कि तहाभावं जागइ , पासइ अन्नहाभावं जाणति पासति ?, गोयमा ! तहाभावं जाणति पासति नो अन्नहाभावं जाणति पासति, से केणतुणं भंते ! एवं बुच्चइ ?, गोयमा ! तस्त णं एवं भवति-एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रुवाई जाणामि पासामि, से से दसणे अविवञ्चासे भवति, से तेण?णं गोयमा! एवं बुचति, वीओ आलावगो एवं चेव नवरं वाणारसीए नगरीए समोहणा नेयव्वा रायगिहे नगरे स्वाइं जाणइ पासइ । अणगारे णं भंते । भावियप्पा अमाई सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहं नगरं वाणारसि नगरिं च अंतरा एगं महं जणवयवरगं समोहए २ रायगिहं नगरं वाणारसिं च नगरिं तं च अंतरा एगं महं जणवयवरगं जाणइ पासइ ?, हंता ! जा०पा०, से भंते ! कि तहाभावं जाणइ पासइ अन्नहाभावं जाणइ पासइ ?, गोयमा ! तहाभावं जाणइ पा०, णो अन्नहाभावं जा० 'पा०, से केणटेणं ? गोयमा ! तस्स णं एवं भवति-नो खलु एस रायगिहे णगरे णो खलु एस वाणारसी नगरी नो खलु एस अंतरा एगे जणवयवग्गे एस खलु ममं वीरियलद्धी वेउव्वियलेद्धी ओहिणाणलद्धी इट्टी जुई जसे वले वीरिए पुरिसक्कारपरकमे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए से से दसणे अविवञ्चासे भवति से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति तहाभावं जाणति पासति नो अन्नहाभाव
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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