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प्रकाशकीय
१ आजके इस वैज्ञानिक युगमें जहां मनुष्यने विज्ञानके द्वारा नई २ व्यवहारोपयोगी वस्तुओं का आविष्कार किया है वहां महान् से महान् संहारक अणुवम जैसे शस्त्रोंका भी। यह सब किसलिए? मेरी सत्ता समस्त संसार पर छा जाए, मैं ही सवका प्रभु हो जाऊं, एक ओर तो शस्त्रोंकी होड़में एक देश दूसरे देशसे आगे निकल जाना चाहता है तव दूसरी ओर आधुनिक जनता का अधिक भाग युद्धको न चाहकर शांतिकी झंखना करता है परन्तु शांति शस्त्रोंके वलबूते पर किए गए युद्धोंसे नहीं मिल सकती शांतिका वास तो आध्यात्मिकतामें है भौतिकतामें नहीं और शातपुत्र महावीर भगवान्के द्वारा प्रतिपादित आगम आध्यात्मिकतासे भरपूर है, उस आध्यात्मिकताके प्रसारके लिए ज्ञातपुत्र महावीर जैनसंघानुयायी उग्रविहारी जैन मुनि १०८ श्रीफूलचंद्रजी महाराज की विशुद्ध प्रेरणासे समितिने आगमोंके प्रकाशनका कार्य अपने हाथमें लिया है जिसका प्रथम फल आपके सन्मुख है। ३२ सूत्रोको 'लुत्तागम' के रूपमें एक ही जिल्दमें देनेकी उत्कट इच्छा होते हुए भी ग्रंथराजका देह-सूत्र वढ़ जानेसे ११ अंगोका प्रथम अंश अलग वनाना पड़ा। इसके प्रकाशनमें जिन २ महानुभावोंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपमें किसी भी प्रकारकी जिनवाणीकी सेवा की है उनका हम हार्दिक आभार मानते हैं, साथ ही सूत्रोंके निकले हुए अलग २ प्रकाशनों पर जिन २ मुनिवरोंने अपनी २ शुभ सम्मतिऍ भिजवाई हैं हम उनके अनुगृहीत हैं और सहधी महानुभावोसे निवेदन है कि वे इस पवित्र कार्यमें सहयोग देकर हमारे उत्साह को बढ़ाएँ।
हम हैं जिनवाणीके सेवाकांक्षी, प्रधान-मास्टर दुर्गाप्रसाद जैन B. A. B. T.
मंत्री-वाबू रामलाल जैन नायव तहसीलदार