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________________ ૨૮૮ सुत्तागमे [ ठाणे सुरूवे सुवन्ने सुगंधे सुरसे सुफासे इठे कंते जाव मणामे अहीणस्सरे जाव मणामस्सरे आदेजवयणे पचायाए जाsविय से तत्थ वाहिरव्भंतरिया परिसा भवइ सावि य णं आढाइ जाव बहुमज्जउत्ते ! भास ॥ ७५८ ॥ अठ्ठविहे संवरे प० तं॰ सोइंदियसंवरे जाव फासिंदियसंवरे मणसंवरे वइसंवरे कायसंवरे, अठ्ठविहे असंवरे प० तं० सोइंदियअसंवरे जाव कायअसंवरे || ७५९ ॥ अठ्ठ फासा प० तं० कक्कडे मउए गरुए लहुए सीए उसिणे निद्धे लुक्खे ॥ ७६० ॥ अठ्ठविहा लोगठिई प० तं० आगासपइट्ठिए वाए वायपइट्ठिए उदही एवं जाव छठाणे जाव जीवा कम्मपट्ठिया अजीवा जीवसंगहीया जीवा कम्मसंगहीया ॥ ७६१ ॥ अठ्ठविहा गणिसंपया प० तं० आयारसंपया सुयसंपया सरीरसंपया वयणसंपया वायणासंपया मइसपया पयोगसंपया संगहपरिण्णाणाम अठ्ठमा ॥ ७६२ ॥ एगमेगे णं महानिही अठ्ठचक्कवालपठाणे अठ्ठठ्ठजोयणाई उ उच्चत्तेनं प० ॥ ७६३ ॥ अठ्ठसमिईओ प० तं० इरियासमिई भासासमिई एसणास मिई आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिई उच्चारपासवणखेलजलसिंघाणपारिठ्ठावणियासमिई मणसमिई वइसमिई कायस मिई ॥ ७६४ ॥ अठ्ठहिं ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अरिहइ आलोयणा पडिच्छित्तए तं० -आयारखं आहारखं ववहारवं ओवीलए पकुव्चए अपरिस्साई निज्जावए अवायदंसी ॥ ७६५ ॥ अठ्ठहिं ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अरिहइ अत्तदोसमालोइत्तए तं० जाइसपन्ने कुलसपन्ने विणयसंपन्ने णाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने खंते दंते ॥७६६ ॥ अठ्ठविहे पायच्छित्ते प० तं० आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेयारिहे मूलारिहे ॥ ७६७ ॥ अठ्ठ मयठाणा प० तं० जाइमए कुलमए वलमए स्वमए तवमए सुयमए लाभमए इस्सरियमए ॥ ७६८ ॥ अठ्ठ अकिरियावाई प० तं० एगावाई अणेगावाई सितवाई निम्मितवाई सायवाई समुच्छेदवाई णियावाई ण संति परलोगवाई ॥ ७६९ ॥ अठ्ठविहे महानिमित्ते प० तं० भोमे उप्पाए सुविणे अंतलिक्खे अगे सरे लक्खणे वंजणे ॥ ७७० ॥ अठ्ठविहा वयणविभत्ती प० तं ० निद्देसे पढसा होइ विइया उवएसणे; तइया करणंमि क्या चरत्थी संपयावणे ( १ ) पंचमी य अवायाणे छठ्ठी सस्सामिवायणे; सत्तमी सन्निहत्थे अठ्ठमी आमंतणी भवे ( २ ) तत्थ पढमा विभत्ती निद्देसे सो इमो अहं वत्ति १ - विझ्या उण उवएसे भण कुण व इमं व तं वत्ति ( ३ ) तइया करपांमि कया णीयं च कयं च तेण व मए वा, हंदि णमो साहाए हवइ चउत्थी पयामि (४) अवणे गिण्हसु तत्तो इत्तोत्ति व पंचमी अवादाणे; छठ्ठी तस्स टमस्ग व गयस्स वा सामिसंबंधे ( ५ ) हवइ पुण सत्तमीयं इमंमि आहारकाल
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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