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________________ २ सु० म०६] सुत्तागमे . अद्दइजज्झयणे छठे पुराकडं अद्द इमं सुणेह मेगन्तयारी समणे पुरासी । से भिक्खुणो उवणेत्ता अणेगे आइक्खएम्हि पुढो वित्थरेणं ॥ १ ॥ ७४४ ॥ साऽऽजीविया पट्टवियाऽथिरेणं सभागओ गणओ भिक्खुमज्झे । आइक्खमाणो वहुजन्नमत्यं न संधयाई अवरेण पुव्वं ॥ २॥ ७४५ ॥ एगन्तमेवं अदुवा वि एहि दोऽवन्नमन्नं न समेइ जम्हा । पुचि च एण्हिं च अणागयं वा एगन्तमेवं पडिसंधयाइ ॥ ३ ॥ ७४६ ॥ समिच्च लोग तसथावराणं खेमंकरे समणे माहणे वा। आइक्खमाणो वि सहस्समज्झे एगन्तयं सारयई तहच्चे ॥ ४ ॥ ७४७ ॥ धम्मं कहन्तस्स उ नत्थि दोसो खन्तस्स दन्तस्स जिइन्दियस्स । भासाय दोसे य विवज्जगस्स गुणे य भासाय निसेवगस्स ॥५॥ ७४८ ॥ महव्वए पञ्च अणुव्वए य तहेव पञ्चासव संवरे य । विरइं इह स्सामणियम्मि पण्णे लवावसकी समणे त्ति बेमि ॥ ६ ॥ ७४९ ॥ सीओदगं सेवड बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ। एगन्तचारिस्सिह अम्ह धम्मे तवस्सिणो नाभिसमेइ पावं ॥ ७ ॥ ७५० ॥ सीओदगं वा तह बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ । एयाइ जाणं पडिसेवमाणा अगारिणो अस्समणा भवन्ति ॥ ८॥ ॥ ७५१ ॥ सिया य बीयोदगइत्थियाओ पडिसेवमाणा समणा भवन्तु' । अगारिणो वि समणा भवन्तु सेवन्ति ऊ ते पि तहप्पगारं ॥ ९ ॥ ७५२ ॥ 'जे यावि वीयोदगभोइ भिक्खू भिक्खं विहं जायइ जीवियट्ठी । ते नाइसंजोगमविप्पहाय कायोवगा नन्तकरा भवन्ति ॥ १० ॥ ७५३ ॥ इमं वयं तु तुम पाउकुव्वं पावाइगो गरिहसि सव्व एव । पावाइणो पुढो किट्टयन्ता सयं सयं दिट्ठि करेन्ति पाउ ॥ ११ ॥ ॥ ७५४ ॥ ते अन्नमन्नस्स उ गरहाणा अक्खन्ति भो समणा माहणा य । सओ य अत्थी असओ यं नत्थि गरहामु दिहिं न गरहामु किचि ॥ १२ ॥ ७५५ ॥ न किंचि रूवेगऽभिधारयामो सदिट्टिमग्गं तु करेनु पाउं । मग्गे इमे किट्टिएँ आरिएहिं अणुत्तरे सप्पुरिसेहिं अङ्ग ॥ १३ ॥ ७५६ ॥ उर्दू अहे यं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा । भूयाहिसंकाभिद्गुञ्छमाणा नो गरहइ बुर्सिमं किंचि लोए ॥ १४ ॥ ७५७ ॥ आगन्तगारे आरामगारे समणे उ भीए न उवेइ वास । दक्खा हु सन्ती वहवे मणुस्सा ऊणाइरित्ता य लवालवा य॥ १५॥ ७५८ ॥ मेहाविणो सिक्खिय वुद्धिमन्ता सुत्तेहि अत्थेहि य निच्छयन्ना । पुच्छिसु मा णे अणगार अन्ने इइ संकमागो न उवेइ तत्थ ॥ १६ ॥ ७५९ ॥ नों कामकिच्चा नं य' वालकिच्चा रायाभियोगेण कुओ भएणं । वियागरेज पंसिणं न वा वि सकामकिच्चेणिह आरियाणं ॥ १७ ॥ ७६० ॥ गन्ता च तत्था अदुवा अगन्ता वियागरेजा समियासुपन्ने ।
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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