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________________ किया । परिणाम स्वरूप आज भी उनकी प्रेरणाओंको जीवित रखनेवालोंकी संख्या ५ लाखसे कहीं अधिक पाई जाती है । लोकाशाह सहित इन चारों महापुरुषोंने चैत्यवासी मान्य अन्य आगमोंमे परस्पर विरोध एवं. मन घड़न्त वाते देखकर ३२ आगमोंको ही मान्य किया। __ आगमोंकी भाषा-समवायांग सूत्र तथा औपपातिकसूत्रमें क्रमशः पाठ आते है "अगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खई" "तए णं ससणे भगवं महावीरे कूणियरल रणो मिसिलारपुत्तस्स..." अद्धमागहाए भासाए मालइ । "ला वि य णं अद्धमागहा मासा तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अप्पणो सभालाए परिणामेणं परिणमई" अर्थात् ज्ञातपुत्र-महावीर भगवान् अर्धमागधी भापामें उपदेश करते थे और वह भापा सब जीवोंकी अपनी २ भाषामें परिणत होती थी। उनके पांचवें गणधर श्रीसुधर्मा स्वामीने द्वादशांगीकी रचना भी अर्धमागधीमें ही की । दिगंबरोंके मतसे ये १२ अंग विच्छिन्न हो चुके हैं परन्तु अपने मतानुसार जैसा कि पहले लिखा जा चुका है देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणने आगमोको लिपिवद्ध किया। इतने समयके बाद लिखे जानेपर भी भाषाकी प्राचीनतामे कमी नहीं आई। क्योकि सैकड़ो वर्पोतक जैसे ब्राह्मणोंने मुखपाठके द्वारा वेदोकी रक्षा की उसी प्रकार जैन मुनिओने भी लगभग १००० वर्ष पर्यन्त शिष्य परम्परासे इन पवित्र आगमोको स्मृतिपथमे रक्खा । दूसरा कारण यह है कि जैन धर्ममें शुद्धपाठोचारण पर खूब जोर दिया गया है, और 'हीणक्खरं' आदि अतिचार वताए गए हैं । फिर भी वारीकीसे देखनेपर यह अवश्य मानना पड़ेगा कि चाहे जैसे भापामें परिवर्तन ज़रूर हुआ है। इसका होना असंभव भी नहीं कहा जा सकता, क्योकि आगम वेदोकी भान्ति शब्द-प्रधान न होकर अर्थप्रवान हैं। ये सूत्र उस समयकी जनसाधारणकी कथ्यभाषामें निर्मित हुए और समयानुसार बोली में (लोकभापामें) होनेवाले परिवर्तनका प्रभाव लोगोके समझा के लिए आगमोपर भी होना आश्चर्यजनक नहीं। इसका एक मुख्यकारण यह भी है कि जातपुत्र-सहावीर भगवान् के मोक्ष जानेके लगभग २०० वर्ष पीछे, २. न. पृ. ३१० चन्द्रगुप्तके समयमे मगधमें १२ वर्षका भयानक अकाल पड़नेके कारण मुनिओको सयम निभानेके लिए दक्षिण देशमें जाना पड़ा और परावर्तन दयो 'एनुअल रिपोर्ट ऑफ एशियाटिक सोसायटी वेगाल' १८५८ डॉ.
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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