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________________ पानीसे पिघला दिया है। कितने ही पशुओंकी बलिवेदीके अट्ठोंको उखाड़ फेका है। हजारो मूक प्राणिओंके प्राणोको मौत के घाट उतरनेसे बचाया है । धन्य है आपके विश्व वत्सल जीवन को, इस क्रूर हिंसाकी भयावह अंधियारी निशामें आप जैसे भिक्खु ही दयाके प्रकाशमान उडुपति हैं तथा लाइट ऑफ मिनार हैं । आपने अहिंसा के ऊंचे ध्वजको फहराया है यानी देश के बड़े बड़े नगरोंमें दयाधर्मके झंडे को हाथमें लेकर भ्रमण किया है । जैसे कश्मीर, कराची, कलकत्ता, झरिया, कानपुर आदि २ और अबकी बार विभवपूर्ण और सौदर्यसम्पन्न कुबेरनगरीके समान वंबई नगर में जैनधर्म की विजयपताका लहरा रहे हैं । इतनी दूर जाकर वीरशासनकी सेवा करना अपनी उपमा आपही है । अस्तु ! मेरी तो शासनदेवसे यही प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों। और आपने जो जैनागम प्रचारका शुभसंकल्प किया है इस भगीरथ कार्य में आपको महान सफलता मिले और तीर्थकर पदके भागी बनें । यद्यपि आपके पावन दर्शनका अवसर मुझे नही मिला तब क्या मै यह आशा कर सकता हूं कि चतुर्मासके बाद इधर पधार कर दर्शनाभिलापा पूरी करेंगे ? क्योंकि आपके मनोहर और क्रांतिकारी उपदेश सुनने को दिल बहुत चाहता है और जो २ सूत्र प्रकाशित हों उन्हें भिजवानेकी कृपा करें आपकी बड़ी महरबानी होगी । भूलके लिए क्षमा ! प्रेषक सेक्रेटरी S. S. जैन सभा मूलक (पेप्लू) } आपका प्यारा दास मुनि भागचंद ( नं. १४) श्री १००८ श्री गणावच्छेदक श्रीरघुवरदयालजी महाराज के पास अपका भेजा हुआ सूत्रकृतांग सूत्र मिला. “संपादन" सुंदर है। धर्मोपदेष्टा श्रीफूलचंदजी महाराजके परिश्रमका यह फल है । आपकी परिश्रमशीलताको देखकर कौनसा मानव है जो आपकी स्तुति न करे । आप जैन साहित्यका कार्य करके अपने जीवनका चरमलक्ष्य पूरा करेंगे। जिसके लिए आपने कदम उठाया है । महाराज श्री आपको धन्यवाद देते हैं निवेदक ५-१०-५१ लाला अछरूमल जैन रईसेआज़म चौक कसेरान पटियाला (E. P . )
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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