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________________ १५ पुत्र लाभ नन्दिश्री के साथ विवाह कर राजकुमार बिम्बसार उसी के घर सुख से रहने लगे । नन्दिश्री अपने पिता की एकमात्र सन्तान थी । अतएव राजकुमार को सेठ जी पुत्र से भी अधिक प्यार करते थे इस विवाह का एक परिणाम यह हुआ कि विवाह से पूर्व जहा राजकुमार अपने राजगृह के सेवको से नगर के बाहिर गुप्त रूप से मिला करते थे, वहा अब वह उनसे अपने घर मे ही स्वच्छन्दतापूर्वक मिलने लगे । वह मगध के युवराज थे और अपने सभी भाइयों सभी से सब प्रकार से अधिक योग्य थे, फिर भी जो उनका अधिकार छीन कर उन्हे देशनिर्वासित किया गया था, उसका उनके मन मे ऐसा भारी शोक था कि वह उसे एक क्षण के लिये भी नही भूलते थे । यद्यपि आजकल उनका समय नन्दिश्री के साथ आनन्दपूर्वक व्यतीत होता था, "किन्तु सुख भोगते हुए भी एक अज्ञात वेदना कभी-कभी उनके मुख पर प्रकट हो जाया करती थी । इन्ही दिनो नन्दिश्री का गर्भ रहा । इस शुभ समाचार से सेठ जी फूले न समाये, किन्तु राजकुमार को इस समाचार से भी अधिक प्रसन्नता न हुई । अन्त मे एक दिन नन्दिश्री ने अवसर देखकर उनसे कहा"आर्य पुत्र । में प्राय आपके अन्दर एक अज्ञात हूँ, जो आपके हृदय में इतनी गहराई तक बैठी हुई है भोग भी उसको भुलाने मे अभी तक असमर्थ रहे है । बिम्बसार - प्रिये, तुम उसकी कोई चिन्ता न करो । मै बिल्कुल ठीक हूँ । मेरा स्वभाव ही ऐसा है कि आनन्दोपभोग करते-करते भी कुछ न कुछ सोचने लग जाया करता हूँ । नन्दिश्री - प्राणनाथ, मै आपकी अर्धाङ्गिनी हूँ । आप मुझे इस प्रकार की बातो से नही टाल सकते । मै जानता हूँ कि आपको अपना राज्य छिनने २ वेदना -सी देखती रहती कि बड़े से बडे सुख
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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