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________________ देश-निष्कासम आपको किसी गुप्तचर ने धोखा दिया है। मेरे जैसे पितृभक्त पुत्र के द्वारा भला क्या ऐसी बात सम्भव है ? राजा-फिर तुम गुप्त रूप से पाच सौ सैनिक अपन पास क्यो रखते हो? बिम्बसार-मै गुप्त रूप से तो नही रखता ! उनको तो मै प्रकट रूप से रखता हूँ और अपने खर्च से ही उनको वेतन भी देता है। यदि अग्पको मेरे पास उनकी उपस्थिति पसन्द नही है तो मैं उनको अभी सेवा-निवृत्त कर सकता हूँ। राजा-किन्तु इससे तुम्हारी सदाशयता का समर्थन तो नही होता । तुम को उसके लिये राज्यदण्ड लेना होगा। बिम्बसार-पिता जी, आपका दिया हुआ राज्यदण्ड तो मै निरपराध होने पर भी प्रसन्नतापूर्वक शिरोधार्य करूँगा। राजा-तुमको इस राज्य-द्रोह के अपराध मे देश-निष्कासन का दण्ड दिया जाता है । जाओ, गिरिव्रज को छोडकर अभी निकल जाओ। इन वजू से भी कठोर शब्दो को सुनकर बिम्बसार को अपने पैरो के नीचे से पृथ्वी निकलती हुई सी प्रतीत होने लगी। किन्तु वह स्वभाव से ही अत्यन्त धीर था। उसने केवल यही कहा___ “पिता जी ! जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम पिता की प्रतिज्ञा पूरी करने के लिये वन जा सकते थे तो क्या आपका यह अधम पुत्र आपकी देशनिष्कासन की आज्ञा का पालन न करेगा। मुझे मातृभूमि के छूटने का इतना दुख नही, जितना दुख मुझे आपके चरणो की सेवा से वचित होने का है। अच्छा पिताजी, मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिये । मै जाता हूँ।" । यह कहते-कहते राजकुमार बिम्बसार का गला भर आया और वह अपन पिता के चरण छूकर वहाँ से चले गए। उस समय राजा उपश्रेणिक का भी गला भर आया था, किन्तु वह बिम्बसार के सामने गम्भीर ही बने रहे। बिम्बसार के चले जाने पर उनके नेत्रो से आसू ढुलकने लगे, जिनको उन्होने बडी कठिनता से पोछा । तब कल्पक ने कहा___ "आखिर महाराज | आपका भी पिता का हृदय है। निरपराध पुत्र को दण्ड देते समय आपके मन मे वेदना होना स्वाभाविक है।"
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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