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________________ युवराजपद की प्रथम परीक्षा मे मुह डालेगा। हुआ भी वास्तव में ऐसा ही । कुत्ते ने राजकुमारो के भोजनगृह में प्रवेश करके सबसे आगे वाली थाली मे से खीर खानी आरम्भ की। बिम्बसार उसको निश्चितता से देखते जाते थे और स्वय भोजन करते जाते थे। कुत्ता एक थाली की खीर खाकर अगली थाली पर बढ गया। बिम्बसार भी दालान के आरम्भ मे ही बैठे होने के कारण कुत्ते के अत्यत समीप थे। कुत्ता जब दूसरी थाली की खीर खा रहा था तो बिम्बसार ने अन्य थालियो को खीच कर अपने पास एकत्रित कर लिया। दूसरी थाली की खीर खा चुकने पर बिम्बसार ने उसकी ओर को एक थाली और फेक दी। कुत्ते ने उसको भी खाना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार कुत्ते की एक-एक थाली समाप्त हो जाने पर बिम्बसार उसकी ओर दूसरी-दूसरी थाली फेकते जाते थे । क्रमश बिम्बसार तथा कुत्ता दोनो अपना-अपना भोजन समाप्त कर चुके । राजा भट्टिय को यह देखकर अत्यत आश्चर्य हुआ कि जिस समय राजकुमार बिम्बसार भोजनशाला से बाहिर निकला तो वह शिकारी कुत्ता पूछ हिलाता हुआ उसके पीछे-पीछे जा रहा था। राजा ने उस समय महामात्य कल्पक से कहा। ____ "कल्पक | मेरे सारे पुत्रो मे यह बिम्बसार ही सब से अधिक तेजस्वी है। आज की घटना से मझे विश्वास हो गया कि वास्तव मे मेरे सब पुत्रो की अपेक्षा मेरा उत्तराधिकारी यही होगा। खैर, अभी तो दो परीक्षाएँ और शेष है।"
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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