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________________ युवराज की खोज महाराज के मृग के पीछे घोडा दौडाने पर यद्यपि उनके अंगरक्षको ने भी उनके पीछे अपने अपने घोडे दौडाए, किन्तु वे महाराज का किसी प्रकार भी पीछा न कर सके और हताश होकर लौट आए। महाराज के दोपहर तक भी न लौटने पर उन्होने वन मे सब ओर फैलकर उनको खोजना आरम्भ किया। वन के आरम्भ मे महाराज का पता न लगने पर उन्होने गहन वन मे घुस कर महाराज को ढूढना आरम्भ कियो । रात्रि का अन्त होने पर वे भीलो की पल्ली" मे उस सरदार के मकान पर पहुँच ही गए, जहा महाराज ने तिलकवती का पाणिग्रहण किया था। महाराज की अगरक्षक सेना के आ जाने से सारी भील बस्ती मे प्रसन्नता की लहर दौड गई। उनके आजाने पर भील सरदार यमदड ने तिलकवती को महाराज के साथ बिदा कर दिया। यौतुक में उसने अपनी सामर्थ्य भर तिलकवती को बहुत कुछ दिया। तिलकवती की डोली के बाहिर आने पर महाराज की अगरक्षक सेना ने अपने महाराज तथा नई महारानी का सैनिक ढग से अभिवादन किया। महाराज महारानी तिलकवती को बडे आदर-सम्मान के साथ गिरिव्रज ले आए। ___महारानी तिलकवती ने इस घटना के ठीक एक वर्ष पश्चात् एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम चिलाती रखा गया । जब तक तिलकवती के पुत्र नही हुआ था महाराज निश्चित थे, किन्तु उसके पुत्र उत्पन्न हो जाने पर उनको अपने उत्तराधिकार के सम्बन्ध में विशेष चिन्ता उत्पन्न हो गई। उनकी चिन्ता का विशेष कारण यह था कि उनके पाँच सौ पुत्रो में सभी एक से एक पराक्रमी थे। उनके पुत्रो मे एक ज्येष्ठ पुत्र श्रेणिक बिम्बसार तो इतना तेजस्वी था कि उसक सम्मुख सामान्य व्यक्ति बात तक नही कर सकते थे। वह उनकी पटरानी इन्द्राणी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। राजकुमार श्रेणिक बाल्यावस्था मे ही अपने पास
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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