SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भील कन्या से प्रणय भील सरदार महाराज को लिये चला जाता था और मन में कुछ सोचता सा जाता था। कुछ दूर चलने पर उसने महाराज से कहा "महाराज ' हम अपावन वस्तुओ को खानेवाले आपका आतिथ्य किस प्रकार करेगे यह समझ में नहीं आ रहा। मेरे पास एक क्षत्रिय बालिका है, जो हम लोगो को लूट मे मिली थी। मैने तथा मेरी रानी विद्युन्मती ने उसका अपनी पुत्री के समान पालन किया है। उसका नाम तिलकवती है। वह महाराज की सब प्रकार से सेवा करेगी और महाराज को भोजन बनाकर भी खिला देगी। यदि महाराज की अनुमति हो तो मैं आपको उसी के महल मे पहुचा दू । "सभवत यही अधिक उचित होगा।" महाराज के यह कहने पर भील सरदार के मन में और भी उत्साह हो आया। अब वह लम्बी-लम्बी डग भरकर चलने लगा । महाराज ने दूर से भीलो की एक छोटी सी बस्ती-पल्ली-को देखा, जिसमें छोटे-छोटे बच्चे दूर से ही खेलते दिखबाई दे रहे थे । पल्ली में भीलो के लगभग पचास घर थे। उनके ठीक बीचो-बीच दो-तीन पक्के मकान थे। सरदार ने महाराज से कहा "महाराज | वह जो पक्के मकान दिखलाई दे रहे है वह अपने ही है।" "अच्छा हम निवासस्थान पर आ पहुचे | अब तुम मुझको नीचे उतार दो। यहा से हम तुम्हारे घर तक पैदल ही चलेगे।" महाराज के यह कहने पर भील सरदार ने उनको अपने कन्धे से उतार दिया। सरदार को एक अपरिचित के साथ आते देखकर भील बालक तो प्रथम ही एकत्रित हो गए थे, अब कुछ युवक भी आ गए। उनको देखकर सरदार ने अपनी भाषा मे जोर से कुछ कह कर डाँटने जैसी मुद्रा प्रकट की कि सभी
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy