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________________ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हिन्दी में साहित्य की वर्तमान गति—यद्यपि भारत परतन्त्रता की बेडी को तोड कर आज स्वतन्त्र हो चुका है, किन्तु उसकी परतन्त्रता की अनेक कुटेव अभी तक भी बनी हुई है। भारत को वर्तमान स्वतन्त्रता अग्रेजो से मिली है, अत. उसकी नस-नस मे अग्रेजीपना समाया हुआ है। जिस प्रकार समृद्ध योरुप के नर-नारी उपन्यास द्वारा मनोरजन कर समय यापन करते है, उसी प्रकारे भारतवासी आज भी करना चाहते है। हिन्दी के लेखक भी अपने ऐसे पाठको की रुचि को पूर्ण करने के लिए अपनी लेखनी का दुरुपयोग कर रहे है। समय-यापन करने वाले साहित्य का राष्ट्रविरोधी रूप-यद्यपि हमको आज राजनीतिक स्वतन्त्रता मिल गई है, किन्तु बौद्धिक परतन्त्रता से हम अभी तक भी नहीं छूट पाये है। इसके अतिरिक्त आर्थिक परतन्त्रता तो हमको अत्यन्त भयकर रूप मे कस कर जकडे हुए है। देश के सामने पुनर्निर्माण के कई क्षेत्र खुले पडे है, जिनमे हमको दसियो वर्ष तक अत्यन्त कठोर परिश्रम करना पडेगा । आज देश के सामने पुनर्निर्माण का इतना अधिक कार्य है कि भारत के बच्चे-बच्चे के योग से ही उसको पन्द्रह-बीस वर्ष में पूर्ण किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में हमको समय का अपव्यय करने वाले साहित्य का अध्ययन करना अथवा निर्माण करन्य दोनो ही कार्य देशहित के प्रतिकूल दिखलाई देते है। जो लोग अपने देश को भरपेट अन्न, वस्त्र, शिक्षा, चिकित्सा तथा आजीविका नही दे सकते उनको इस प्रकार समय का अपव्यय करने तथा कराने का कोई अधिकार नहीं है। हिन्दी के ऐतिहासिक उपन्यास-इसी भावना के वशवर्ती होकर आज हिन्दी के लेखको मे समय का अपव्यय करने वाले उपन्यासो की अपेक्षा ऐतिहासिक उपन्यासो का कुछ-कुछ आदर किया जाने लगा है। इधर हिन्दी में कई एक अच्छे ऐतिहासिक उपन्यास निकले है। श्री वृन्दावनलाल वर्मा से उपन्यास लेखको मे आज अग्नगण्य है। किन्तु श्री चतुरसेन शास्त्री को वृन्दावन बाबू कर
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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