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________________ वाया, कितु पाप लोग तो मेरे रूप-यौवन के भूखे थे। मेरे संग के समय मेरे पास क्यो आते ? कितु भगवान् तथागत मेरे रोग का समाचार पाकर विना बुलाए ही मेरे पास आए और उन्होने मेरी परिचर्या करके मुझे रोग • के सकट से छुडा दिया। आज उन्होने मेरे ऊपर दया करके जो मेरे घर सघसहित भोजन करना स्वीकार किया है, यह मेरे जीवन में सबसे बडा सम्मान है। "आपकी बैशाली का यह नियम कि नगर की सब से सुन्दर कन्या को विवाह न करने देकर सब के उपभोग के लिये रखा जावे, अब भी मेरे हृदय मे शूल के समान चुभ रहा है। कहा मै वैशाली के प्रधान सेनापति की प्राणप्यारौ पुत्री, कहा यह वार-वनिता का जीवन ? आप लोगो ने मेरे स्त्रीत्व का अपमान किया है। किंतु मै आप लोगो को दिखला दू गी कि मै आप लोगो से कही अधिक ऊची बन चुकी हूँ।" यह कहकर आम्रपाली अपने रथ को शीघ्रता से अपने भवन की ओर ले चली। आम्रपाली ने घर आकर भगवान् तथागत की दावत का बडा भारी आयोजन किया । उसने अपने महलो तथा वाटिका की खुद सफाई कराई। फिर उसने भगवान् तथागत के भिक्षुप्रो तथा भिक्षुरिणयो के लिये अनेक प्रकार के भोजन तैयार कराए। ____ भोजन का समय होने पर भगवान् तथागत अपने सघसहित उसके घर पधारे । आम्रपाली ने भगवान् के घर मे पधारने पर उनका चरणोदक लेकर उनको साष्टाग दण्डवत किया । इसके पश्चात् उसने भगवान् और उनके शिष्यो को भोजन कराया । भोजन समाप्त होने पर आम्रपाली भगवान् को प्रसन्न मुद्रा में देखकर बोली___"भगवन् ! आपने मेरे घर अपनी जूठन डाल कर जो मुझे विशेष सम्मान दिया है, उसकी कृतज्ञता स्वरूप मै आपसे एक निवेदन करना चाहती हूँ।" ___ "कहो आम्रपाली । तुम्हे जो कुछ कहना हो प्रसन्नता से कहो।" "महाराज | मेरी यह इच्छा है कि मेरा यह भारी महल तथा बगीचा सघ के लिये सकल्प कर दिया जावे । मै चाहती है कि आप मुझे ऐसा करने
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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