SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिया। किन्तु अजातशत्रु से साक्षात्कार करके प्रसेनजित् इतन प्रसन्न हुआ कि उसने उसके साथ अपनी कन्या वाजिरा का विवाह करके उसे छोड दिया और यौतुक मे 'नहान-चुन्न मूल्य' के रूप मे एक लाख वार्षिक आय का काशी का वह प्रदेश भी उसको वापिस दे दिया, जो उसने क्षेमा के विवाह के अवसर पर बिम्बसार को दिया था। ___ अजातशत्रु के गद्दी पर बैठने से कुछ ही समय पूर्व वत्सराज उदयन का विवाह अवन्तिराज चण्डप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता के साथ हुआ था, जिसका वर्णन पीछे किया जा चुका है। बिम्बसार के शासन के अन्तिम दिनो मे चण्डप्रद्योत ने ईसापूर्व ५३० मे मगध पर आक्रमण करने की तैयारी की। किन्तु इसके पाच वर्ष पश्चात् ईसा पूर्व ५२५ मे प्रद्योत का स्वर्गवास हो जाने से मगध अवन्ति की ओर से निश्चित हो गया। प्रद्योत के बाद उज्जयिनी की गही पर पालक बैठा । कहा जाता है कि जिस दिन यह गद्दी पर बैठा उसी दिन भगवान महावीर स्वामी का पावापुर में निर्वाण हुआ । पालक ने २४ वर्ष राज्य किया। भगवान् महावीर स्वामी का निर्वाण-अजातशत्रु के राज्य के छठे वर्ष ईसा पूर्व ५२६ या ५२७ मे भगवान् महावीर स्वामी को मोक्ष हो गया। किन्तु कुछ लोग महावीर निर्वाण ईसा पूर्व ५४६ मे मानते है। इस मत को मानने से इन सभी तिथियो मे २० वर्ष और बढाने पड़ेंगे। भगवान् महावीर स्वामी ने अपने निर्वाण से पूर्व शूरसेन, दशार्ण देशो में होते हुए सिन्धु, सौवीर देश मे भी विहार किया था। उन्होने हेमाग देश की राजधानी राजपुर मे भी जाकर उपदेश दिया था। राजपुर उन दिनो दण्डकारण्य के निकट था। वहा के राजा जीवधर अत्यत पराक्रमी थे। उन्होने पल्लव आदि अनेक देशो को जीता था। राजा जीवधर ने दक्षिण भारत के अनेक देशो का भ्रमण किया था। अत मे वह भगवान् महावीर स्वामी के निकट मुनि बन गए थे। बाद में उनके सम्बन्ध मे 'छत्र-चूडामरिण', 'जीवन्धर-चम्पू' आदि अनेक साहित्य ग्रन्थ लिखे गए। पोदनपुर मे राजा प्रसन्नचन्द्र भगवान् महावीर स्वामी का भक्त था। पोलासपुर का राजा भी उनका भक्त था। इस प्रकार भगवान् ने तीस वर्ष तक उपदेश देकर पावापुर नामक स्थान से कार्तिक वदि अमावस्या को निर्वाण ३२
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy