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________________ श्रेणिक बिम्बसार हठ छोड़कर अपना घेरा उठा लेना चाहिये।" कुमार के यह वचन सुनकर राजा रत्नचूल के नेत्र क्रोध से लाल हो गये । वह क्रोध मे भर कर कुमार से बोला___ "हे बालक ! तू मेरे घर मे दूत बन कर आया है। फिर तू बालक भी है, इसलिये मारने योग्य नहीं है किन्तु तूने जैसे अनुचित वचन कहे है यदि कोई अन्य व्यक्ति ऐसे वचन कहता तो मै उसे तत्काल मरवा देतात इस बात को नहीं जानता कि क्या कहना चाहिये और क्या नही कहना चाहिये। न तू इस बात का विचार करता है कि तू कितने बलशाली के साथ वार्तालाप कर रहा है। तू ढीठता के साथ जो मन मे आया, बक रहा है। जिस प्रकार उलूक मे सूर्य का सामना करने की शक्ति नहीं होती, उसी प्रकार दुष्ट मृगांक या राजा श्रेणिक दोनो मे से कोई भी युद्ध मे मेरा सामना नही कर सकता । तुझे छोटे मुह बडी बात नहीं करनी चाहिये।" राजा रत्नचूल के यह वचन सुनकर जम्बूकुमार ने उत्तर दिया 'हे विद्याधर ! तूने जो कुछ भी घमड के वश मे होकर कहा है वह अपनी तथा दूसरे की शक्ति पर विचार किये बिना ही कहा है। तू अपनी विमान सेना पर घमड करता है, किन्तु स्मरण रख कि काक भी आकाश मे उडता है, किन्तु वह बाण से बिंध कर भूमि पर आ गिरता है।" जम्बू कुमार के यह वचन सुनकर राजा रत्नचूल क्रोध मे भर कर अपने योद्धाओ से बोला "यह बालक बहुत वाचाल तथा कड वा बोलने वाला है । आप लोग इसको पकड कर हमारे सामने जान से मार डालो।" ___ राजा रत्नचूल के यह वचन सुनकर दो सैनिक जम्बूकुमार को पकड़ने को आगे बढ़ । किन्तु जम्बूकुमार ने उन दोनो को टाग लगाकर वह पटखनी दी कि दोनो चारों-खाने चित्त होकर धूल फाकने लगे। उन दोनो के गिरते ही एकदम पचास जवान तलवारे हाथ में लेकर जम्बूकुमार पर झपटे । उनको अपनी ओर प्राते देखकर जम्बूकुमार फुर्ती से वहा से उछल कर एक
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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